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________________ शोषण और उत्पीड़न मिटे बिना प्रेम कहां? प्रेम बिना समता कैसी? नहीं होती। हिंसक की दृढ़ता कट्टर होती है, लोच उसमें नहीं होता, पर वह दृढ़ता नहीं होती। ऐसा बल सदा अपने से अधिक बल से डरता है । इस बल से प्रबल माने जाने वाले हिंसक व्यक्तियों के समक्ष यदि उनकी पत्नी या पुत्र की हत्या का दृश्य आवे तो क्या होगा? क्या वे अविचल रह सकेंगे, बल्कि वे डर से बौखला जाएंगे। दूसरी ओर महात्मा गांधी जैसे व्यक्तियों के बारे में सोचा भी नहीं जा सकता कि स्वयं उनके पुत्रों को उनके सामने फांसी दी जाती है तो वे तनिक भी नहीं डिगते । यह भारी अन्तर होता है शरीर बल और आत्मबल । आशय यह है कि हिंसक से हिंसक व्यक्ति भी उपचार के योग्य होता है कि वह अहिंसक बन सके। उसके मन में रचे-बसे भय को निकाल दीजिए, वह अवश्य हिंसा से हटने लगेगा। फिर फार्मूला यह बनेगा कि हिंसक को सुधारिए, हिंसा को हटाइए। विषमताओं को मिटाने के लिए आगे बढ़िए, व्यवस्था को नये सिरे से ढालिए कि समतामय वातावरण तथा रचना का आरम्भ हो सके । किन्तु यह सब चरित्र बल के आधार से ही किया जा सकेगा जिसके सामने बाहर का कोई भी बल टिकता नहीं। गांधीजी ने कभी किसी को नहीं मारा, पर खुद हमेशा मरने लिए तैयार रहे तथा आत्मबल का अमोघ उपाय सबको बताया । विश्व में शायद ही ऐसा कोई धर्म होगा जो हिंसा का समर्थन करता हो । सभी धर्मग्रन्थों में अहिंसा और शांति की चर्चा मिलती है। यह दूसरी बात है कि अनुयायी अंधे जोश में अपनी ही धर्माज्ञाओं को न माने। हिंसा के सवाल पर कुरान (इस्लाम का मुख्य धर्म ग्रंथ) की किन्हीं आयतों का जिक्र करना उचित रहेगा। कहा गया है कि खुदा के नाम पर उन लोगों से इतनी ही लड़ाई करो जितनी लड़ाई वे तुमसे कर रहे हैं, खुद हमला कभी मत करो। खुदा हमलावरों को पसंद नहीं करता। (अल-बकर, 2-191) और अगर तुम हमलावरों को सजा देना चाहते हो तो उन्हें उतनी ही जितनी उन्होंने तुम्हारे साथ बुराई की हो। यह न करके अगर तुम सहनशीलता दिखलाओ तो वह सबसे अच्छी है (अलनहल, 16-127) तथा अगर वे हमलावर अमन की ओर आगे बढ़ते हो तो तुम जरूर अमन की ओर ही बढ़ो (अल अनफल 8-62 ) यहां तक कि दो मुसलमान आपस में जो दुआ सलाम करते हैं, वह 'अस्सलाम-ओ-अलेकुम" कहा करते हैं जिसका मतलब है - आपको शान्ति प्राप्त हो। कुरान में एक स्थान पर तो यह भी लिखा है कि शहीद के खून से भी ज्यादा पाक होती है सत्य - शोधक की कलम की स्याही। इस विवेचन का अन्तर्भाव यह है कि जिस धर्ममजहब के क्षेत्र में उनके अनुयायी अपनी सच्ची शिक्षाओं को भूल कर अतिचार या मिथ्याचार में भटक गये हों, उनके जागरण का प्रश्न भी चरित्र निर्माण व विकास की दृष्टि से ध्यान में रखा जाना चाहिए। यह एक और धार्मिक शिक्षा भी प्रचार में आनी चाहिए उन लोगों के लिए जो कर्म, नियति या भाग्य में अधिक ईश्वर द्वारा सृष्टि संचालन में ज्यादा भरोसा करते हैं। उन्हें बताया जाए कि ईश्वर अपने काम में भेदभाव कदापि नहीं करता, इसलिए वह उन सब भेदभावों के विरुद्ध है जो भेदभाव मनुष्य ने अपनी काली ताकतों की मदद से जन्म, सम्पत्ति, वर्ण, धर्म या अन्य बातों को लाद कर पैदा किए हैं। वे यह मानेंगे कि सभी मनुष्य समान हैं, समानता उनका अधिकार है तथा समाज, राष्ट्र विश्व में समानतापूर्ण व्यवस्था स्थापित करने में प्रत्येक मनुष्य को आगे आना चाहिए तथा अपनी योग्य भूमिका निभानी चाहिए। सजा 44 461
SR No.002327
Book TitleSucharitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
PublisherAkhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
Publication Year2009
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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