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सुचरित्रम्
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हुए गुणों की उपेक्षा भी न करें। यह भी हम ध्यान रखें कि असलियत में और आलोचना में भी अच्छाइयों के पलड़े को हमेशा वजनदार बनाए रखें। इतना ही नहीं, बल्कि सबको प्रत्यक्ष दिखाई भी दे कि दरअसल अच्छाइयों का पलड़ा वजनदार ही है ।
भारत देश की वर्तमान परिस्थितियों के संदर्भ में इस प्रचलित दृष्टिकोण को समझिये । सामान्य रूप से आज सभी को लगता है कि देश में कानून एवं व्यवस्था की स्थिति बड़ी खराब है, अपराधों का ग्राफ बहुत ऊपर जा रहा है और नई पीढ़ी के चाल-चलन में भी बड़ी खराबियाँ धंस गई है - यह एक दृष्टिकोण है । क्या यह दूसरा दृष्टिकोण नहीं बनाया जा सकता कि इन सबके बावजूद बहुसंख्यक लोगों की सुरक्षा हो रही है, उनके काम-धंधे अच्छे चल रहे हैं, सामान्य रूप से आपसी व्यवहार भी बहुलांश में सही है तथा इसी प्रकार का भाईचारे का माहौल भी । यदि ऐसा न हो तो दंगे-फसाद होते रहें, चारों ओर अराजकता फैल जाए या प्रत्येक व्यक्ति का जीना दुस्वार बन जाए । लेकिन, ऐसा नहीं है और इसका साफ मतलब यही है कि समूचे वातावरण का अधिकांश अच्छा है। अच्छाई अधिक है और बुराई कम । इस बुराई को भी दूर करने की लगातार कोशिश होनी चाहिये, लेकिन उससे भी बढ़कर कोशिश अच्छाई को मजबूत बनाने की होनी चाहिये। ऐसी मानसिकता जब बनेगी तो संसार, समाज और राज को केवल कोसने की खोखली प्रवृत्ति बंद हो जायेगी ।
यही लक्ष्य है चरित्र-निर्माण के सतत सक्रिय अभियान का कि बुरे संसार की बुराई को कम करने तथा अच्छे संसार की अच्छाई को बढ़ाने का कार्य निरन्तर उत्साहपूर्वक किया जाए। यह समझ लिया जाना चाहिये कि अब तक संसार का सारा काम चरित्र बल की सहायता से ही चलता आया है। और दोष या बिगाड़ तभी पैदा हुआ जब चरित्र बल क्षीण हुआ । दीर्घकाल के इतिहास के तथ्यों को परखेंगे तो स्पष्ट होगा कि संसार और चरित्रबल सदा एकीभूत रहे हैं। संसार का सही स्वरूप तभी सामने आ सका है, जब चरित्रशील पुरुषों का प्रभाव सर्वोच्च रहा यानी अधिसंख्य जन चरित्र का अनुसरण एवं मर्यादाओं का पालन करने में अग्रसर रहे। जब चरित्रहीनता का दौर आता है तब संसार के अन्यान्य समुदाय भी विकारग्रस्त होते हैं और पूरे एक वृहद् घटक के नाते संसार की प्रतिष्ठा भी गिरती है ।
वास्तविकता के इस प्रकाश में यह सिद्धांत सिद्ध माना जाना चाहिये कि संसार तथा चरित्रबल की एकात्मकता आज भी बनी हुई है और भविष्य में भी बनी रहेगी, क्योंकि यदि ऐसा न हो तो संसार का चलना ही दुष्कर हो जाएगा अर्थात् चरित्र के पूर्ण अभाव में तो संसार में प्रलय ही आ जाएगा। किन्तु, ऐसा होगा नहीं । आवश्यकता है कि चरित्रबल को सब ओर उभारा जाए, सामान्य जन के मन-मानस यह पैदा किया जाए और इस संसार में पुनः चरित्रबल से सब सबल बनें।