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शोषण और उत्पीड़न मिटे बिना प्रेम कहां? प्रेम बिना समता कैसी?
प्रेम ही संसार का आधार
प्रेम व मोह में भेद पूछा है . मैं सब भेदों के पीछे एक ही चीज देखता हूं वह एक मूल भेद ही सब में प्रकट होता है वह भेद क्या है? मैं या तो अपने को जानता हूँ या नहीं जानता हूँ "मैं कौन हूँ"-यह नहीं जानने से जो प्रीति पैदा होती है वह मोह है। "मैं कौन हूँ"-यह जानने से प्रेम आता है। प्रेम ज्ञान है, मोह अज्ञान है प्रेम निरपेक्ष हैसबके, 'समस्त' के प्रति वह 'पर' पर निर्भर नहीं है वह स्वयं में है वह 'किसी से नहीं होता है बस होता है।
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