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सुचरित्रम्
है। यह क्रोध तालाब में पानी सूखने से मिट्टी में पड़ी दरार के समान होता है जो वर्षा के होते ही मिट जाती है। जघन्य श्रेणी का क्रोध तो पर्वत के बीच पड़ी चट्टानों की दरार की तरह होता है जो दरार प्रयत्न करने पर भी वर्षों तक नहीं पाटी जा सकती है। जघन्य क्रोध जीवन भर तक बना रहता है। यह क्रोध निकृष्ट गतियों में भ्रमण कराता है। एक सूक्ति है-क्रोध अनर्थों का मूल है, संसार की परम्परा को बढ़ाने वाला है, धार्मिकता को क्षत-विक्षत करने वाला है, अतः क्रोध त्याग देना चाहिए (क्रोधो मूलमनर्थानां, क्रोधः संसारवर्धनम्। धर्म क्षयकरः क्रोधः, तस्मात् क्रोधं विवर्जयेत् )। आगमों में क्रोध की उत्पत्ति के कारण बताए गए हैं1. क्षेत्र - किसी स्थान विशेष पर पहुंचने से उत्पन्न होने वाला क्रोध।
. 2. वस्तु - जड़ चेतन किसी वस्तु विशेष को देख कर उत्पन्न हुआ क्रोध। 3. शरीर - अपने अथवा परायों के शरीरों की न्यूनाधिकता या कुत्सित आकृतियां देख कर पैदा
होने वाला क्रोध। 4. उपधि - उपकरणों के माध्यम से उत्पन्न होने वाला क्रोध।
कहा गया है-'क्रोध हि शत्रु प्रथमो नराणाम्' अर्थात् क्रोध मनुष्यों का पहला शत्रु है, क्योंकि यह तन को तपाता है, मन को सताता है, रक्त-मांस को सुखाता है, सारे सद्गुणों को नष्ट करता है और यह साथ ही आत्मभान को भुलाता है। क्रोध, एक ऐसा तूफान है जिसके प्रबल वेग में पितापुत्र, भाई-भाई, माता-पुत्री, सास-बहू, पति-पत्नी और गुरु-शिष्य के आत्मीय सम्बन्ध भी हवा में उड़ जाते हैं। सहज व स्वाभाविक प्रेम द्वेष और विद्वेष में बदल जाता है। क्रोध की निष्पत्तियां हैं-1. समस्त समस्याओं का आगमन-द्वार, 2. एक दूसरे पर आक्रमण, 3. अधिकारों का अपहरण, 4. विश्वास व प्रेम का ह्रास और सर्वनाश, 5. सामाजिक व धार्मिक क्षेत्रों में आपाधापी, 6. घृणा, द्वेष, वैमनस्य, छल-छद्मों की आग, 7. मन, बुद्धि, निर्णय शक्ति, कार्य क्षमता की कुंठा, 8. शारीरिक व . मानसिक असन्तुलन, 9. भय, उद्वेग, तनाव व व्याधियों का सर्जक, 10. सम्पूर्ण विवेक विकलता का उद्गम स्थल, 11. जन्म-जन्मान्तर तक चलने वाली वैर परम्परा का विष बीज, 12. जीवन की सुन्दरता, सुकुमारता, सौम्यता, सरलता व स्वस्थता पर कुठाराघात, 13. भाषा संयम, विचार संयम और व्यवहार संयम का अन्त आदि।
क्रोध को जीतने के कुछ उपाय-1. क्रोध को उपशम भाव से जीतें (उवसमेण हणे कोहं)।
2. छोटा सा है एक उपाय-एक मौन सब दुःख हरे, नहीं बोले तो गुस्सा मरे। .3. प्रबल क्रोध के रोग को हर सकता हैं कौन? उसका एक इलाज़ है-मन में रखना मौन । या गुस्से से बढ़कर कौन है, इन्सान का दुश्मन-है शान का, रुतबे का और ईमान का दुश्मन। ....
4. क्रोध को क्षमा से जीतें। क्षमा रूपी शस्त्र जिसके हाथ में है, क्रोध उसका क्या बिगाड़ सकता है (क्षमा खड्गं करे यस्य, किं करिष्यति क्रोधः)। ____5. वैर से वैर कभी शान्त नहीं होता अतः क्रोध छोड़े, वैर होने ही न दें।
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