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. मानव सभ्यता के विकास की कहानी इसी त्रिकोण पर टिकी है
चरित्र, धर्म और विज्ञान का त्रिकोण
भगवान् महावीर के समय में अनाथी नाम के एक मुनि
हो गए हैं। वे अपने घर में विपुल, वैभव और ऐश्वर्य सम्पन्न व्यक्ति थे। विशाल वैभव, माता-पिता का कोमल स्नेह, पत्नी का अनन्य प्रेम-इन सबको ठुकरा कर उन्होंने साधना का मार्ग स्वीकार किया और राजगृह के शैल शिखरों की छाया में, लहलहाते वन प्रदेश में जाकर सजीव चट्टान की तरह साधना में स्थिर होकर खड़े हो गए। भगवान् महावीर ने उनके अन्तर में त्याग और साधना के दिव्य सौन्दर्य को देखा। किन्तु जब राजा श्रेणिक ने उन्हें देखा तो उसका दृष्टिकोण उनके बाह्य रूप एवं यौवन के सौन्दर्य पर ही अटका रह गया और उसी पर मुग्ध हो गया। श्रेणिक के मन में विचार आया कि यह युवक साधना के मार्ग पर क्यों आया है? उसने युवक मुनि से साधु बनने का कारण पूछा तो उन्होंने नम्र भाव से उत्तर दिया-"मैं अनाथ हूँ। मेरा कोई सहारा नहीं था, इसलिए मुनि बन गया।"
श्रेणिक ने इस उत्तर को अपने दृष्टिकोण से नापा कि युवक गरीब होगा, अतएव अभावों और कष्टों से प्रताड़ित होकर गृहस्थ जीवन से भाग आया है। राजा के मन में एक
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