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________________ सुचरित्रम् .. निःसंकोच कह सकते हैं कि अब तक साधी गई प्रगति अपने सच्चे अर्थों में वास्तविक है? क्या अभी तक हम प्रेम, सहानुभूति, नम्रता एवं लघुता का पाठ पढ़ पाए हैं और उसे अपने चरित्र में उतार पाए हैं? उत्तर नहीं में होगा। सामान्यजन को परमाणु बम नहीं चाहिए, उसे चाहिए भोजन, आवास, वस्त्र और स्वस्थ चरित्र का निर्माण। किसी को नहीं चाहिए घणा और जातीय भेदभाव. आज मानव जाति को चाहत है प्रेम, संवेदना तथा वैश्विक भाईचारे की। स्वार्थवादिता और तनाव ने आज मनुष्य के मन तथा जीवन का सन्तुलन अस्त-व्यस्त कर दिया है। लोग धर्म के नाम पर मारकाट मचाते हैं, घरों को जलाते हैं और बस्तियां उजाड़ते हैं-यह जानते हुए भी कि कोई धर्म हिंसा और घृणा को नहीं मानता। वेद, सूत्र, गीता, बाइबिल, कुरान-सब में यही लिखा है कि प्यार, सहकार और भाईचारे का व्यवहार सबके साथ किया जाए, किन्तु धूर्त लोग इन उपदेशों में गलत अर्थ समझाते हैं और लोगों को भ्रमित बनाते हैं। यह गतिविधि बंद होनी चाहिए। ढाई हजार वर्ष पूर्व महावीर, बुद्ध आदि धर्म प्रवर्तकों ने लोगों के 'दुःख' की ओर सबका ध्यान दिलाया, दु:ख के कारण तथा उसके निवारण के उपाय बताए और अहिंसा मूलक जीवनशैली का विकास किया। उत्थान का मार्ग कहा-सम्यग् ज्ञान, सम्यग् दर्शन एवं सम्यक् चारित्र-यह महावीर ने उपदिष्ट किया तो बुद्ध ने अष्टयामी मार्ग का निर्देश किया। आज इस मार्ग का अनुसरण करने की आवश्यकता है एवं तदनुसार ही अपने चरित्र का गठन एवं विकास करने की भी आवश्यकता है। इस प्रकार के चरित्र निर्माण से ही अथवा ऐसी चरित्रशीलता या चरित्र सम्पन्नता से ही धर्म तथा सम्प्रदायों की नई छवि उभरेगी और विश्वास करने की बात है कि इस नई छवि से ही नई विश्व संस्कृति का उद्भव होगा, विकास होगा। नई विश्व संस्कृति के निर्माण में प्राचीन संस्कृतियों के अनुभवजन्य गुणों का समावेश करना होगा जिनमें आत्मानुशासन, सत्यशीलता एवं संवेदनशीलता मुख्य होंगे। शिक्षा प्रणाली में बुनियादी बदलाव लाना होगा और बुनियादी सिद्धान्त होंगे, जीवन में आध्यात्मिकता एवं नैतिकता की. मूल्यवत्ता, सत्यवादिता एवं उच्च कोटि का चरित्र निर्माण। चरित्र निर्माण का सुप्रभाव यह होगा कि विद्यार्थी से गृहस्थ बना व्यक्ति इन्द्रियजन्य वासनाओं के पीछे नहीं भागेगा और दैनिक जीवन में हिंसा तथा अपराध ने जो घर बना लिया है, उसे नहीं टिकने देगा। नई विश्व संस्कृति में केवल आध्यात्मिकता की सराहना से काम नहीं चलेगा, उसे आत्मसात् करनी होगी। वह प्रत्येक नागरिक के आचरण में परिलक्षित होगी। विश्व की नई संस्कृति तभी रची जाएगी जब प्रत्येक नागरिक का नया चरित्र ढलेगा, जो स्वयं से प्रारम्भ होकर विश्व के कोने-कोने तक पहुंचेगा और नई संस्कृति का अभिन्न अंक बन जाएगा। इस संदर्भ में चरित्र संघटकों के लिए यह संदेश है कि पहले स्वयं चरित्रशील बनो, फिर चरित्र गठन को अपने अगले साथी का श्रृंगार बनाते हुए आदर्श परिवार, समाज एवं विश्व तक के नव निर्माण में जुट जाओ कि एक दिन विश्व के समस्त नागरिक विवेकशील, ईमानदार और गुणवान् बन जाए। एक बुनियादी हकीकत भी सदैव ध्यान में रहनी चाहिए कि व्यक्ति ही समूह को जगाएगा, जग कर समूह अन्य व्यक्तियों के लिए सुगम धरालत बनाएगा जिस पर चलने वाले व्यक्तियों की मंजिल 440
SR No.002327
Book TitleSucharitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
PublisherAkhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
Publication Year2009
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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