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नई सकारात्मक छवि उभरनी चाहिए धर्म-सम्प्रदायों की
रूप बना दिये हैं। व्यवहार धर्म का अर्थ है-निश्चय धर्म तक पहुंचने के लिए पृष्ठभूमि तैयार करने वाला धर्म। साधना की उत्तरोत्तर प्रेरणा जगाने के लिए और उसका अधिकाधिक प्रशिक्षण लेने के लिए व्यवहार धर्म की आवश्यकता है। यह एक प्रकार का विद्यालय है। विद्यालय ज्ञान का दावेदार नहीं होता किन्तु ज्ञान का वातावरण जरूर निर्माण करता है। विद्यालय में आने वाले के भीतर प्रतिभा है तो वह विद्वान् बन सकता है, ज्ञान की ज्योति प्राप्त कर सकता है, लेकिन निराबुद्ध तो वहां भी वैसा का वैसा ही रहेगा। विद्यालय में यह शक्ति नहीं कि किसी को विद्वान् बना दे। यही बात व्यवहार धर्म की है। बाह्य क्रियाकांड किसी का कल्याण करने की गारंटी नहीं दे सकता जिसके अन्तःकरण में अंशतः ही सही, निश्चय (आन्तरिक) धर्म की जागृति होगी, उसी का कल्याण हो सकता है, अन्यथा नहीं। वर्तमान परिस्थितियों में हमारे जीवन में निश्चय धर्म अर्थात् आन्तरिक व्यक्तित्व की साधना जागनी चाहिए। कोरे व्यवहार धर्म के कारण जो विकट विवाद, समस्याएं और नकारात्मक रुख मुंह बाए खड़ा हैं, उनका समाधान केवल निश्चय धर्म की ओर उन्मुख होने से ही हो सकता है। निश्चय धर्म को सकारात्मक रूप में ढाल कर न सिर्फ धर्म की, बल्कि सम्प्रदायों की भी नई छवि का निर्माण किया जा सकता है जो ऐसे मानव चरित्र का गठन करेगी जिसके द्वारा चरित्र की सुधारात्मक शक्ति को विश्व स्तर तक प्रभावात्मक बनाई जा सकेगी। ___ आज का धार्मिक जीवन उलझा हुआ है, सामाजिक जीवन विविध समस्याओं से घिरा है, राजनीतिक जीवन भ्रष्टता के तनावों से अशान्त है, इन और अन्यान्य सभी समस्याओं का समाधान तभी संभव है जब व्यक्तिगत एवं समूहगत जीवन में विषमताओं एवं विकृतियों का अन्त हो तथा अनासक्ति के साथ समतापूर्ण वृत्तियों एवं प्रवृत्तियों का समुचित विकास हो अर्थात् चरित्र विकास की श्रेणियों में आगे बढ़ते हुए आन्तरिक व्यक्तित्व की सुदृढ़ रचना की जाए तथा बाह्य व्यक्तित्व का आधार आन्तरिक व्यक्तित्व को बनाया जाए। जब शुभता की भाव प्रधानता होगी तभी क्रियाकांडों में वास्तविकता रहेगी, अन्यथा आज के भावहीन क्रियाकांड सबको कितनी क्षति पहुंचा रहे हैं, यह सभी के सामने है। अनासक्ति, अपरिग्रह अथवा वीतरागता का दृष्टिकोण व्यापक होता है। हम अपनी वैयक्तिक, सामाजिक एवं सांप्रदायिक मान्यताओं के प्रति भी आसक्ति न रखें, आग्रह न करेंयह एक स्पष्ट दृष्टिकोण है। सत्य के लिए आग्रही होना एक बात है और मत के लिए आग्रही होना दूसरी बात। सत्य का आग्रह दूसरे के सत्य को ठुकराता नहीं, बल्कि सम्मान करता है, जबकि मत का आग्रह दूसरे के अभिमत सत्य को सत्य होते हुए भी ठुकराता है, उसे लांछित करता है। सत्य के लिए संघर्ष करने की आवश्यकता नहीं होती, उसके लिए तो साधना करनी पड़ती है, मन को अनाग्रह और समता से जोड़ना होता है। किन उपायों से ढाली जा सकती है धर्म-सम्प्रदायों की नई छवि? :: ___ धर्म की नई छवि निखरेगी तो सम्प्रदायों की तदनुसार छवि अवश्य ढलेगी या दूसरे शब्दों में यों कहें कि यदि सम्प्रदायों के नायक धर्म के आन्तरिक स्वरूप को प्राथमिकता दें और भीतर के अनुसार बाहर को चलावें तो धर्म व सम्प्रदाय दोनों की छवि व्यक्ति एवं समाज दोनों के लिए कल्याणकारक बन जाएगी।
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