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चरित्र को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ले जाने हेतु सद्भाव जरूरी
का भी एकता के आधार पर नव निर्माण किया जा सकता है। आज अलग-अलग राष्ट्रीयता, जाति, धर्म, सभ्यता, भाषा, रहन-सहन आदि विभेदों वाले विभिन्न वर्गों युक्त इस विश्व समाज में जो एकता और एकरूपता लाने के प्रयास चल रहे हैं, उनके पीछे एक ही दृष्टिकोण है और एक ही दृष्टिकोण रहना चाहिए और वह है मानवता का दृष्टिकोण । इसी मानवता से और तदनुरूप चारित्रिक सम्पन्नता से विश्व स्तर तक न्यायपूर्ण समाज गठित किया जा सकेगा जिसका उद्देश्य होगा कि किसी भी नाम पर होने वाले मनुष्य और मनुष्य के बीच के अन्याय की सारी कड़ियां तोड़ दी जाए और ऐसी न्यायपूर्ण व्यवस्था की प्रतिष्ठा हो जिसके अन्तर्गत न्याय सम्पन्न परिवार की तरह विश्व के सभी नागरिक शान्ति से रहे, सुख से जिएं और एक-दूसरे के मददगार बनें।
इस लक्ष्य को पाने के लिए समाज में आज प्रचलित नियमों को दो वर्गों में बांट कर समझना होगा। एक तो है शोषण का नियम (लॉ ऑफ एक्सल्पोइटेशन) जिसमें 'जीवो जीवस्य भक्षणम्' का रंग-ढंग दिखाई देता है कि किसी अन्य की कुछ भी हानि (प्राण- हानि तक भी) हो तब भी अपना काम बना ही लेना चाहिए। इसके विपरीत नियम होता है जो मानवता के लिए स्वाभाविक भी है, वह है त्याग - बलिदान का नियम (लॉ ऑफ सेक्रीफाइस) जिसमें 'जीवो जीवस्य रक्षणम्' के अनुसार अपने स्वार्थों से ऊपर उठ कर परहित करने की प्रवृत्ति प्रबल होती है। समाज का सदस्य यानी कि व्यक्ति उपलब्ध चरित्र और वातावरण के अनुसार इस या उस नियम में ढलता है, किन्तु आवश्यकता इस प्रयास और चरित्र विकास की है कि त्याग-बलिदान का नियम लोगों के मन में जमे और परिवार से लेकर विश्व तक के सभी समूह इस प्रकार की चरित्र सम्पन्नता से विभूषित होकर सर्वत्र समतामय एकता की स्थापना का शंखनाद कर दें। यों चरित्र का निर्माण व विकास भी आज विश्व स्तरीय ही होना चाहिए।
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