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चरित्र को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ले जाने हेतु सद्भाव जरूरी
समरस से ही चरित्र भौगोलिक सीमा तोड़ेगा
यह प्राची का अथ है यह प्रकाश का पथ है। यहीं से होकर जाता नित्य प्रति सूर्य-किरण का रथ है। अंधकार छाया घटाटोप आज पर कल यहीं ऊषा दिवेगी अविराम गति से पांव चले तो उत्साहित अंगुलियाँ यहीं पर काल चक्र का विजयी इतिहास लिरवेगी। इसलिए, हे पथिक! निश्चल गति से बढ़ते जाना बाधाओं से लड़ते जाना इसी मार्ग पर बढ़ते-बढ़ते टूटता स्वार्थ का मन्मथ है
यही प्रकाश का पथ है। कवि के हृदयोद्गार स्पष्ट रूप से अभिव्यक्त करते हैं कि यह प्रकाश की प्रार्थना-अभ्यर्थना है। भारत में विशेष लगाव है, प्रकाश के साथ। दीपोत्सव उसका ज्वलन्त
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