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रहस्यों, संभावनाओं तथा प्रत्यक्ष उपलब्धियों से भरा है यह संसार!
आगे बढ़ कर अपने आपको चरित्रनिष्ठ बनाएगा तथा अपने आदर्श को सामने रखकर सारे समाज को चरित्र निर्माण की दिशा में आगे बढ़ने की प्रेरणा देगा। व्यक्ति का चरित्र उन्नत होता है तभी समाज में नैतिकता एवं वैचारिकता का प्रसार होता है और यह भावनामय सामंजस्य ही व्यक्ति एवं समाज दोनों के उद्भव का कारगर कारण बनता है। संसार की आधार भूमि जितनी समतल, जितनी स्वच्छ एवं उर्वर बनेगी, उतनी ही व्यक्ति की उच्चतम उन्नति साधने की प्रेरणा भी प्रबल स्वरूप धारण कर सकेगी। यह संसार चरित्रशील पुरुषों को ललकारता रहा है, आज भी ललकार रहा है :
— संसार सदा गतिशील तो रहता ही है-दिशा चाहे उत्थान की हो या पतन की, परन्तु इसकी प्रगतिशीलता सदा ही चरित्रशील पुरुषों की मुखापेक्षी रही है। प्रगति का कारक वही बन सकता है जो अपने सशक्त हाथों में प्रगति की डोर को थामकर सबको साथ में चला सकता है। यह सामर्थ्य चरित्र-सम्पन्नता से ही उपजता और पनपता है। यही पृष्ठभूमि होती है कि संसार के अनभेदे रहस्य चरित्रनिष्ठ पुरुषों को ललकारते हैं कि वे आगे बढ़ें और संसार में उत्थान के नए द्वार खोलें। आज भी यह ललकार चारों ओर गूंज रही है।
संसार के रहस्यों का भेदन तभी संभव होता है, जब स्वार्थ से ऊपर उठ कर स्व-पर कल्याण का ही भाव हो तथा उससे आगे बढ़कर स्व को भी विसर्जित कर देने की उमंग हो और जब संसार का हित ही सर्वोपरि बन जाए। रहस्यों के उद्घाटन से पहले या बाद में जब-जब भी सत्ता एवं सम्पत्ति के स्वार्थों ने अपना दबाव बनाया है, तब-तब सर्वहित के स्थान पर तुच्छ स्वार्थ हावी हुए हैं और प्राप्त उपलब्धियों का इतना दुरुपयोग किया गया है कि वे संसार की हितकारी बनने के स्थान पर संहारक बन गई। अणुशक्ति की उपलब्धि का उदाहरण हमारे सामने है और यह उदाहरण इस सत्य को सिद्ध करता है कि उपलब्धियों का सदुपयोग चरित्रशीलता के अभाव में सुरक्षित नहीं किया जा सकता है। सर्वहित की प्रबल भावना ही रहस्योद्घाटन के भविष्य को निर्बाध बना सकती है। जैसे सर्प एकान्त दृष्टि से चलता है, वैसे ही एकान्त दृष्टि से चरित्र धर्म का पालन करना अत्यन्त कठिन है (अहीवेगंत दिट्ठिए, चरित्ते पुत्त! दुच्चरे-उत्तराध्ययन, 19/38), किन्तु ऐसी दृढ़ता ही तो चरित्र धर्म की मुख्य विशेषता होती है। __संसार के अनभेदे रहस्यों को भेदने की ओर ध्यान भी ऐसे चरित्रनिष्ठ पुरुषों का ही जाता है और उन्हीं की जिज्ञासा उन्हें जान लेने को उद्दाम बन जाती है। साहस उनका सम्बल बनता है और वे साधना या शोध पथ पर निर्द्वन्द रूप से आगे बढ़ जाते हैं। उनका यह वृहद (महत्) कार्य ही संसार को नई-नई उपलब्धियों के उपहार भेंट करता है कि उन उपलब्धियों के आधार पर प्रगति के नयेनये आयाम प्रकट हों। ___ आज तक ऐसे अनजाने रहस्यों को भेदते आए हैं ज्ञानीजन, साधक, दार्शनिक, ऋषि, मुनि आदि तो दूसरी ओर वैज्ञानिक, साहित्यकार , कवि, कलाकार आदि। इन सबकी उपलब्धियों ने संसार को श्रेष्ठ से श्रेष्ठतर बनाने की ही प्रेरणा दी है। फिर भी वांछित प्रगति नहीं साधी जा सकी अथवा किन्हीं
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