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________________ सुदृढ़ संकल्प बिना चमत्कार असंभव व्यक्ति के प्रत्येक कार्य के पीछे कोई न कोई प्रयोजन अवश्य होता है। यह हो सकता है कि किन्हीं का प्रयोजन अति स्पष्ट हो और विवेक पूर्वक पहले निर्धारित किया हुआ हो और दूसरी ओर कइयों का प्रयोजन उन्हें स्वयं भी स्पष्ट नहीं होता। प्रयोजन की अस्पष्टता कार्य सिद्धि की बड़ी बाधा होती है तो निष्प्रयोजन कार्य को निरी मूर्खता माना जाता है। प्रयोजन का निर्धारण बुद्धि का महत्त्व सिद्ध करता है। तो संकल्प इसी प्रयोजन का उच्चतर चरण है। हमने जो सोचा या निश्चित किया है, वह पूरा होना ही चाहिए इस प्रकार की जो इच्छाशक्ति उभारी जाती है, वह संकल्प की दृढ़ता का अभ्यास होता है तथा सुस्थिर विचार, विवेक और कल्पना तक उस संकल्प को पूर्णता तक पहुंचाते हैं। यह अनुभव की बात है कि यदि संकल्प के साथ तादात्म्य स्थापित कर लिया जाए तो संकल्प सिद्ध होकर ही रहता है। संकल्प शक्ति के साथ कार्य की कठिनता भी कम हो जाती है। विचारणीय यह हैं कि चरित्र निर्माण और विकास के लिए व्यापक स्तर पर कोई अभियान छेड़ा जाता है तो सफलता के लिए संकल्पबद्ध होना चाहिए और गतिक्रम में पग-पग पर प्रयोजन की स्पष्टता जांचते रहना चाहिए। संकल्प-यात्रा में भय का सामना तन-बल से नहीं, मन-बल से: सामान्य यात्राओं में भी अनेक प्रकार के भय, आशंकाएं, सन्देह, अविश्वास आदि के अंधड़ उठा करते हैं और मार्ग को बाधित बनाते हैं तो संकल्प-यात्रा में यह सब स्वाभाविक होता है। जितना महद कार्य, उतनी ही आपदाएं-बाधाएं अधिक। इसका कारण है और वह सही भी है। सोना बिना अग्नि में तपाए शुद्ध नहीं होता। शुद्ध होता है अशुद्धता समाप्त होने पर, जो तपाने से ही समाप्त होती है। फिर जीवन कैसे निखर सकता है बिना कठिनाइयों को झेले और बिना उन पर विजय पाए। मानव जब तक बड़ी-बड़ी अग्नि परीक्षाओं से सफलतापूर्वक नहीं गुजर जाता, तब तक उसे महानता की प्राप्ति नहीं होती है। संकल्प यात्रा तो एक अति महत्त्वपूर्ण यात्रा होती है, जीवन यात्रा होती है-उसमें विविध प्रकार के भय संकल्प यात्री को घेरें और उसे डिगावें, पथ भ्रष्ट करना चाहें-यह तो होता ही है। भय से टकराना, अभय बनना तथा साथियों को अभय बनाना-इससे मनोबल संचित होता है, स्थिर और सुदृढ़ बनता है। यह मनोबल ही संकल्प सिद्धि का सबसे बड़ा सहायक तत्त्व माना गया है। ___ इतिहास साक्षी है कि राष्ट्र तक अपनी प्रगति की प्रक्रिया में भय से ग्रस्त बनते आए हैं वे उससे लड़ते भी आए हैं तथा कभी जीत और कभी हार झेलते आए हैं। फिर व्यक्ति के जीवन में तो पगपग पर तरह-तरह के भय सताते ही हैं। भारत देश ने शक, हूण, तैमूर लंग, नादिरशाह, मुहम्मद गजनवी आदि आक्रान्ताओं के रूप में बार-बार भय का सामना किया है तो आज भी आतंकियों और आतंकवादी संगठनों का भय सिर पर मंडरा रहा है जो पूरी सतर्कता और सैनिक विरोध के बावजूद भी समाप्त नहीं किया जा सक रहा है। सच तो यह है कि यह हिंसक आतंकवाद पूरी दुनिया के लिए खतरा बन गया है और आश्चर्य का विषय है कि यह आतंकवाद भी धर्म या मजहब के नाम पर चलाया जा रहा है। निर्दोष लोगों के रक्तपात पर भी धर्म का मुलम्मा चढ़ाया जाता है। जो भी है यह आतंकवाद आज भय का सबसे बड़ा कारक बना हुआ है और भय संकल्प यात्रा का पहला शत्रु होता है। कोई भी विचारधारा चाहे वह धार्मिक, राजनीतिक या सामाजिक हो भय के आधार पर जब बन्द (अप्रकट) व्यवस्था में क्रियान्वित की जाए तो वह हानिप्रद हो जाती है, क्योंकि उस बन्द व्यवस्था में 391
SR No.002327
Book TitleSucharitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
PublisherAkhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
Publication Year2009
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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