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________________ सामाजिक प्रवाह की गतिशीलता व निरन्तरता हेतु हो बदलाव जाए, उनके गुण दोषों को बारीकी से समझा जाए तथा उन पर सार्वजनिक बहस के माध्यम से सामूहिक धारणा का विकास किया जाए। इससे लागू किये जाने वाले परिवर्तनों को सामाजिक या राष्ट्रीय स्वीकृति मिल जाएगी तथा उनके विरोध के अवसर ही पैदा नहीं होंगे। इस प्रक्रिया के बाद उचित परिवर्तनों को लागू करना कठिन नहीं रह जाएगा। इस कर्त्तव्य की ओर पुरानी पीढ़ी तो ध्यान दे ही, लेकिन नई पीढ़ी को विशेष सजगता दिखानी पड़ेगी। इस सजगता का मूल प्रयोजन यह हो कि पुरानी पीढ़ी के अनुभवों का लाभ तथा उचित दिशा निर्देश नई पीढ़ी को प्राप्त हो सके और दोनों पीढ़ियों के बीच स्नेह सूत्र सुदृढ़ बन जाए। ____ आज सत्कृति के युग में प्रवेश करने के लिए ऐसी सकारात्मकता एवं रचनात्मकता की नितान्त आवश्यकता है। इससे नवनिर्माण का पक्ष प्रबल होता जाएगा और साथ ही पीढ़ियों का अन्तराल (जेनरेशन गेप) न्यनतम बिन्द पर लाया जा सकेगा। एक ओर नवनिर्माण में चारित्रिक जीवन्तत दृष्टिगत होगी तो दूसरी ओर व्यक्ति एवं समाज की प्रगति में अवरोध नहीं आ पाएंगे। व्यक्ति पूर्ण उत्साह से आगे बढ़ेगा तो सामाजिकता उस प्रगति के धरातल को समतल एवं पुष्ट बनाती जाएगी। व्यक्तिगत प्रतिभा तथा सामाजिक शक्ति एक दूसरी से टकराएंगी नहीं, बल्कि एक दूसरी की पूरक होकर गति को सन्तुलित एवं तीव्र बना देगी। इस स्थिति में विकास (इवोलूशन) तथा क्रान्ति (रिवोलूशन) दोनों तत्त्वों का सुन्दर समावेश हो सकेगा। वह समावेश व्यक्ति हित से लेकर विश्वहित तक परम सहयोगी हो जाएगा। सोचिये कि क्या वैसा समय स्वर्णिम नहीं बन जाएगा? जब कृति अपने मैल से मक्त होकर पन: अपने शद्ध स्वरूप में रूपान्तरित हो जाए और सत्कृति का वातावरण चारों ओर छा जाए तो वैसे काल को ही तो स्वर्णिम काल कहा जाता है। ऐसा स्वर्ण काल नवयुवक एवं युवतियों की उभरती हुई कर्म-शक्ति के सिवाय क्या कोई अन्य शक्ति ला सकती है? नहीं ला सकती है। परिवर्तन की डोर युवा हाथों में जाएगी तभी चरित्रहीनता का तमस मिटेगा और सफलतापूर्वक लाए गए परिवर्तनों के प्रकाश में सत्कृति का सारभूत स्वरूप समस्त वातावरण को आच्छादित कर लेगा। किन्तु परिवर्तन की डोर को थामना एवं विवेक, साहस तथा शक्ति का संतुलन बनाए रखना युवा शक्ति के लिए आसान भी है तो परिस्थितियों की प्रतिकूलता में कठिन भी। आसान इस दृष्टि से कि युवा वर्ग अपने जोश और होश से पुरानी पीढ़ी का दिल जीतते हुए उसे नवसृजन की ओर मोड़ देगा। परन्तु कठिनाई का सबसे बड़ा कारण यही बनता है कि कभी-कभी या अक्सर करके कोई भी पीढ़ी-पुरानी या नई-अपनी-अपनी तानने की हठ नहीं छोड़ती। यह बुरी आदत दोनों को छोड़नी होगी। किसी भी विवाद का निर्णय सत्य के आधार पर करना होगा कि किसका किसी बात को तानना कितना उचित है? अथवा कितना अनुचित है? जब औचित्य सिद्ध न होता हो और हठ बनी रहती हो तो युवा शक्ति को समाज के लिए एक सर्जन (चीरफाड़ का डॉक्टर) का काम करना होगा। जैसे सर्जन शरीर के रोगग्रस्त भाग को छेदता-काटता है, लेकिन रोग (गांठ आदि) निकाल कर वापिस टांके और मरहम भी लगाता है और उस भाग को स्वस्थ बना देता है। इसी प्रकार अन्तिम उपाय के तौर पर युवा वर्ग को-चाहे कुछ निर्मम भी होना पड़े-सद्भाव के साथ ऐसी चीरफाड़ के लिए तत्पर रहना चाहिए, क्योंकि इसके बिना नवनिर्माण के अभियान को न दिशा मिल सकेगी और 379
SR No.002327
Book TitleSucharitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
PublisherAkhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
Publication Year2009
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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