________________
सुचरित्रम्
को तैयार नहीं, उसकी मांग मानने की बात तो अलग है। सामान्य रूप से भी पुरानी पीढ़ी किसी भी परिवर्तन की आवश्यकता देखती-मानती नहीं और आवश्यकता समझ में भी आ जाए, तब भी उसे स्वीकार करना नहीं चाहती। इस हठ से नई पीढ़ी भी हठी बनी है-बल्कि ज्यादा हठी, क्योंकि नया खून जो है और वह अपनी हर बात पर-चाहे वह अच्छी है या बुरी पूरा जोर देने लगी है। इस कारण दोनों पीढ़ियों के बीच समन्वय और तालमेल की बात नहीं बैठ रही है। रस्सी ताकत से ज्यादा खिंचती रही तो उसका टूटना अवश्यंभावी है। यों कई स्थानों पर रस्सियां टूटती भी जा रही है। उचित परिवर्तन भी जब रोका जाता है तो जवान दिलों में लावा भरता है और तब स्थिति विस्फोटक बन जाती है। विस्फोट हो जाने के बाद हानि-लाभ का लेखा नहीं लगता, इस कारण विस्फोट से पहले पक्का आकलन किया जाना चाहिए कि कितना और कैसा परिवर्तन उचित है तथा मानने योग्य है। इस के सिवाय जो एक पक्ष को उचित नहीं प्रतीत होता, उसके बारे में दोनों पक्ष चर्चा करके सहमति बना लें। इस आकलन में ही विस्तृत रूप से हानि-लाभ का लेखा लगाया जाना चाहिए और तदनुसार परिवर्तन के संबंध में निर्णय लेना चाहिए। __ लहरबाई-उर्मिला देवी की समस्या यों जटिल कतई नहीं है। चांदी के मोटे कड़ों को तुड़वा कर पायजेब बना लिए जाए-तो इसमें ज्यादा सोच-विचार करने की कहां जरूरत है? चांदी की कोई हानि नहीं, बल्कि एक कड़ा जोड़ी की तीन-चार पायजेब जोड़ी बन सकती हैं, जिन्हें लहरबाई अपनी अन्य पुत्र वधुओं को भी भेंट में दे सकती है यानी कि कुल मिलाकर लाभ ही होगा-सिर्फ घड़ाई का खर्च ही अतिरिक्त होगा। चांदी का सिर्फ रूप ही नहीं बदलेगा, बल्कि उसका मैल जल जाएगा तथा पायजेब चमचमाते हुए दिखाई देंगे। तब उर्मिला देवी भी प्रसन्न हो जाएगी और दोनों सास-बहू के बीच सद्भाव पैदा हो जाएगा। यदि ऐसा परिवर्तन नहीं माना जाता है तो संघर्ष तथा संबंध विच्छेद का खतरा खड़ा है यानी कि जो लावा भरा है, उससे विस्फोट हो सकता है। ___ यही है आज के संसार और समाज की प्रधान समस्या है कि क्या किया जाए जिससे अनुचित - - हठ संघर्ष और संबंध विच्छेद तक न पहुंचे तथा शुभदायक शाश्वतता का निर्वाह करते हुए सही. परिवर्तनों के साथ संबंधों की मधुरता को बनाए रखी जाए? पुरानी पीढ़ी और नई पीढ़ी केवल अपने . ही पक्ष की जानकारी तक सीमित न रहें, बल्कि दूसरे पक्ष की वैचारिकता को भी ध्यान में लें अर्थात् विवेक के साथ दोनों पक्षों की समस्याओं का मिल जुलकर अध्ययन करें और सहमति से निर्णय लें। कृति का स्वर्ण-युग और प्रतिकृति का लम्बा अंधकार-काल : ___ संभवतः प्रत्येक संस्था, योजना, संगठन, आन्दोलन आदि की गति में कहीं न कहीं, कभी न कभी, किसी जाने या अनजाने कारण से बाधा अवश्य पैदा होती है और गत्यावरोध की स्थिति सामने आती है। किन्तु मात्र कालचक्र ही ऐसा एकाकी तत्त्व है जिसका गत्यावरोध कभी नहीं होता। काल का चक्र सदा निरन्तर चलायमान रहता है। काल की परिभाषा दी गई है कि वह वर्तता रहता है और नये को पुराना करता रहता है। काल प्रवाह में सभी तत्त्वों एवं पदार्थों का रूपान्तरण होता रहता है। परिस्थितियां बदलती हैं तो सोचने-विचारने के ढंग भी बदलते हैं। शैलियां और पद्धतियां भी बदलती हैं, यहां तक कि सिद्धान्तों के अर्थ विन्यास भी बदल जाते हैं, किन्तु नहीं बदलता है तो सिद्धान्तों का
376