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________________ बढ़ते आतंकवाद व हिंसा के लिए धर्मान्धता जिम्मेदार गहरी बने कि सबके प्रति 'अच्छा' रहा गया है। किन्तु आज के जीवन में यह अनुभूति कभी-कभी ही होती है ऐसे अच्छेपन की । सच तो यह है कि आज हमारा देश और समाज एक प्रकार के आध्यात्मिक संकट से गुजर रहा है। चारों ओर बढ़ती हुई हिंसा को देखिए और शोषण की कटुता को देखिए जिससे आज 'धर्म के विश्वास के नाम पर जनता को प्रहार झेलने पड़ रहे हैं और जब धार्मिक विश्वास सत्ता के भूखे नेताओं के हाथों में सत्ता पाने का एक हथियार बन जाता है तो धर्म की आत्मा मर जाती है। 1992-93 में घटित साम्प्रदायिक दंगों को लोग अब तक भी भूलें नहीं होंगे, जिनके कारण मुंबई जैसा व्यस्त और एकजुट नगर भी टूट कर तार-तार हो गया। इन दंगों का एक बड़ा सबक भी सामने आया कि जिसने भी हत्या जैसा जघन्य अपराध किया, वह किसी न किसी धर्म का विश्वास करने वाला ही था तो क्या यह आत्मालोचना का विषय नहीं कि आध्यात्मिकता जीवन की कठिन समस्याओं को शान्तिपूर्वक सुलझाने में असफल रही है? ये समस्याएं तभी सुलझाई जा सकती है, जब वर्तमान समाज की जड़ों में जाकर उसकी यथार्थता की पहचान की जाए। इस यथार्थता की पहचान कर पाना कठिन नहीं। हमारा देश इतना विशाल है, इसमें इतनी विविधताएं हैं, फिर भी समानताओं के सूत्र पकड़े जा सकते हैं। देश के दूर-दराज के भागों में यात्रा करने वाले आध्यात्मिक सामर्थ्य का सच्चा परिचय पा सकते हैं। इस तथ्य का एक दृष्टान्त देखिएएक आदिवासी नाव चलाने वाले से जब यह पूछा गया कि 'वह लोगों को नदी पार कराने का धंधा करते हुए दिन भर में कितना कमा लेता है, और क्या तुम यह नहीं सोचते कि सरकार नदी पर जो पुल बनवाने जा रही है, उसके बन जाने के बाद तुम्हें अपने जीवननिर्वाह के साधन से हाथ धो लेना पड़ेगा?' नाविक ने उत्तर दिया - 'पुल बनने का मेरे निर्वाह पर असर जरूर पड़ेगा, लेकिन उससे क्या ? पुल बन जाएगा तो सभी लोगों को अधिक आय के साथ अपने निर्वाह को बेहतर बनाने में कितनी सहायता मिल जाएगी। यह लाभ मेरे अपने लोगों को मिलेगा। इसके सामने यह कोई खास बात नहीं कि मुझे और मेरे परिवार को अपनी जिन्दगी की गाड़ी चलाने के लिए कोई और रास्ता ढूंढ़ना पड़ेगा ।' क्या नाविक का यह उत्तर, जो सहज सरलता से परिपूर्ण था, दिल के तार-तार को झंकृत कर देने वाला नहीं है? क्या इस उत्तर में आध्यात्मिक सामर्थ्य की झलक नहीं दिखाई देती? चाहे उसकी मान्यता का कोई धर्म रहा हो या नहीं, किन्तु क्या उत्तर में सभी धर्मों के विश्वास का सार नहीं खोजा जा सकता है? क्या उपरोक्त 95 वर्षीय आध्यात्मिक साधक, जिसने आध्यात्मिकता के शास्त्र खूब पढ़े और खूब सुनाए, इस साधारण नाविक से श्रेष्ठतर माना जा सकता है? इस नाविक की कोई विशिष्ट आध्यात्मिक साधना नहीं थी, फिर भी उसमें अपने आसपास की दुनिया को सही परिप्रेक्ष्य में समझने और तदनुसार अपनी सोच को ढाल लेने की योग्यता अवश्यमेव बहुत थी। इसे ही तो स्वाभाविक रूप से आध्यात्मिक समझ या विवेक का नाम दिया जाना चाहिए। उस नाविक का जीवन अपने यथार्थ अर्थ में उस आध्यात्मिक साधक के प्रश्न का परोक्ष उत्तर था कि इस जीवन का अर्थ क्या है? भारतीय संस्कृति और सभ्यता का यह मूलमंत्र रहा है कि आपको यदि ईश्वर को खोजना और 365
SR No.002327
Book TitleSucharitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
PublisherAkhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
Publication Year2009
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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