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बढ़ते आतंकवाद व हिंसा के लिए धर्मान्धता जिम्मेदार
धर्म के नाम पर विषवमन
यह कहानी नहीं, हकीकत है। एक बार एक 95 वर्षीय
आध्यात्मिक साधक विख्यात दार्शनिक यू.जी. कृष्णमूर्ति से मिलने पहुंचा। उस वृद्ध ने दार्शनिक से पूछा-'इस मानव जीवन का अर्थ क्या है?' उस वृद्ध साधक ने आध्यात्मिक जीवन पर सैंकड़ों ग्रंथ लिखे थे, अपने अनुयायियों को शास्त्रों के महत्त्वपूर्ण उद्धरण सुनाए थे और संसार के समक्ष शास्त्रों का अर्थ-विन्यास स्पष्ट किया था, लेकिन वह स्वयं ही जीवन का अर्थ नहीं समझ पाया था। कृष्णमूर्ति ने उसके प्रश्न का उत्तर दिया-'देखो, आप 95 वर्ष का लम्बा जीवन जी चुके हो, फिर भी जीवन का अर्थ नहीं खोज पाए। क्या आपने कभी सोचा है कि शायद है, इस जीवन का कोई अर्थ ही न हो?' उस दुःखान्तग्रस्त वृद्ध ने गलत भरोसा किया था कि कीर्ति और शक्ति के साथ उसे आध्यात्मिक सम्पत्ति भी अवश्य ही प्राप्त हो जाएगी। किन्तु कृष्णमूर्ति के नकारात्मक उत्तर ने वृद्ध की आंखें खोल दी।
क्या ऐसा ही कइयों के साथ-सबके साथ नहीं घटतागुजरता? बार-बार लोग भूलते रहते हैं कि सच्चा संतोष तभी प्राप्त हो सकेगा, जब आन्तरिकता में ऐसी अनुभूति
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