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रहस्यों, संभावनाओं तथा प्रत्यक्ष उपलब्धियों से भरा है यह संसार!
चरित्र संपन्नता के तीन चरण माप सकते हैं पूरे संसार को :
संसार के अनेक रहस्यों का जो आज तक उद्घाटन होता रहा है और उनके स्वरूप में तथा संसारवासियों के ज्ञान में जो प्रौढ़ता आती रही है वह चरित्र सम्पन्न व्यक्तियों के तीन चरणों के बल पर ही तो। वे तीन चरण हैं-1. रहस्य की कल्पना, 2. जिज्ञासा की जागृति एवं 3. साहसिक साधना या शोध। इन तीन चरणों को गोताखोरी का नाम भी दे सकते हैं कि गोताखोर जितना कुशल होगा, वह अनजान बहुमूल्य मोतियों को उतनी ही अधिक संख्या में प्राप्त कर सकेगा।
तीन चरणों की उक्ति तो मशहूर है। वैदिक मान्यता के अनुसार बलि राजा की बाधा को पार करके वामन अवतार ने जिस प्रकार तीन पगों में पूरी धरती माप ली और राजा के अहंकार को कुचल दिया, उसी प्रकार एक चरित्र सम्पन्न पुरुष अपने इन तीन पगों से पूरे संसार को माप कर लोककल्याण को उजागर कर सकता है। आत्म-कल्याण कर सकता है।
आपके दिलों में भी हलचल मचती होगी कि अपने-अपने जीवन को भी सार्थक बना कर कुछ ऐसी पहचान दी जाए जिससे स्वयं को भी पूर्ण आत्म-तुष्टि मिले और इस संसार को भी नई उपलब्धि। यही भाव प्रवणता का तकाजा है। पहली बात तो यह कि एक युवा हृदय में महत्त्वाकांक्षा बने और उसकी पूर्ति में साहस जागे, तब इच्छा शक्ति का निर्माण होगा और अपने उद्देश्य की प्राप्ति के लिये न सिर्फ प्रयास के पग उठेंगे, बल्कि एक संघर्ष की हलचल भी शुरु होगी। यही हलचल उसे सफलता के द्वार तक पहुँचा कर उसे नई छवि प्रदान करती है। यह छवि ही संसार को प्रभावित करती है तथा संसार उस छवि का अनुसरण करने को सफलतापूर्वक प्रेरित हो जाता है। परन्तु पहले इस संसार को तो समझिए कि वह है क्या और कैसा है? :
वर्तमान संसार के नक्शे के सामने अगर एक आदमी को खड़ा किया तो वह उसे किस नजरिए से देख पाएगा अथवा वह अपने संसार का क्या विवरण देगा-इसे समझने से फिलहाल चरित्र निर्माण अभियान के क्षेत्र का निर्धारण करने में सविधा रहेगी।
तो बात है सामान्य जन की धारणा की कि यह संसार क्या है और कैसा है? स्थूल रूप से एक सामान्य जन का यही उत्तर हो सकता है कि यह संसार हमारा, सबका-सारी मनुष्य जाति का, पशुपक्षियों का, जीव-जन्तुओं का, विविध पदार्थों का, अणु-परमाणु का यानी सबका घर ही तो है। - किन्तु, यह घर इतना बड़ा है कि हर कोई इस घर के हर किसी हिस्से को पूरी तरह नहीं जानता-सबका सब जगह पहँच पाना तो बहत दर की बात है। इसमें रहने वाले सब भी अन्य सबको नहीं जानते हैं या कम अंशों में ही जानते हैं। ऐसी जानकारी अन्य छोटे प्राणियों की बात नहीं, स्वयं सर्वाधिक बुद्धिशाली एवं उन्नत जीवन जीने वाले मनुष्य की ही बात है।
असल में जो व्यक्ति जहाँ जन्मा है तथा जहाँ-जहाँ अन्यान्य कारणों से उसका आवागमन, सम्पर्क या संबंध बनता है, मुख्यतः उतना ही उसका अपना संसार होता है। व्यक्तिगत दृष्टि से ऐसे भू-भाग को 'जाना और देखा हुआ' यानी ज्ञात एवं दृष्ट संसार कहा जा सकता है। उस व्यक्ति का वही प्रत्यक्ष