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________________ धनबल, बाहुबल व सत्ता की ताकत का सदुपयोग चरित्रवान ही करंगा के मूल्यों का क्या होगा? राजनीति ने जब से सेवा का लक्ष्य छोड़कर सत्तापरक रूख अपनाया तब से ही ये मूल्य छिन्न-भिन्न होते जा रहे हैं और राजनीति के जरिए पूरे समाज और राष्ट्र पर बहते जा रहे अपराधियों के प्रभाव से तो ये बचे खुचे मूल्य भी नष्ट होने से शायद ही बचेंगे। ___ यह गंभीर समय है, जब चरित्रहीनता के घातक खतरे को पूरा राष्ट्र महसूस करे और चरित्र निर्माण तथा विकास के कार्य में अब तनिक भी विलम्ब नहीं किया जाए। यदि अब भी इस उद्देश्य के लिए जन-जागरण नहीं किया तो बहुत देर हो जाएगी कि अपराध ग्रस्तता से फैली चरित्रहीनता को पूरी तरह मिटा सकें। भ्रष्टाचार ऊपर से नीचे तक ऐसा फैला कि बेशर्मी भी शरमा गई: ___ किसी भी राष्ट्र या समाज में भ्रष्टाचार के फैलाव के तीन मुख्य कारण हो सकते हैं-1. व्यक्ति की अपने मूल्यों के प्रति संज्ञा कैसी है यानी की उसके संस्कारों की दृढ़ता की स्थिति क्या है? 2. समाज उन मूल्यों से कितने अंशों में प्रभावित है? कितने लोग दुकान से कुछ खरीदने पर बिल या रसीद लेने का आग्रह करते हैं? इस प्रकार अनाग्रही लोग क्या काले धन को बढ़ाने में मदद नहीं करते, जो काला धन भ्रष्टाचार का मूल कारण हैं? कितने ऐसे हैं जो अपने बच्चों के शिक्षण संस्था में प्रवेश के लिए डोनेशन या रिश्वत देने से हिचकिचाएंगे? लगता है कि सभी मूल में स्वार्थी हैं और अदूरदृष्टि भी। इसी का परिणाम है कि बड़े-बड़े शहरों में बिजली की चोरी करने वाले झोंपड़पट्टियों में रहने वाले गरीब नहीं, बल्कि वे बड़े-बड़े लोग होते हैं जो बड़े-बड़े कारखाने चलाते हैं और घरों में एअरकंडिशनिंग में आराम करते हैं। लेकिन ऐसे कामों को जानते हुए भी सभी लोग उन्हें सहन करते हैं, ऐसा क्यों? क्या यह सामान्य मानसिकता नहीं बन गई है कि जानते देखते भी भ्रष्टाचारी बर्ताव को बर्दाश्त किया जाए? 3. तीसरा बड़ा कारण है कि राज्य चलाने की विधि और व्यवस्था कैसी है? इस देश में लोकतंत्र है। लोकतंत्र को राजनीतिक दलों की जरूरत होती है तथा दलों को अपना काम चलाने तथा चुनाव लड़ने के लिए फंड (धन) की जरूरत होती है। फंड नकद में इकट्ठा किया जाता है जो ज्यादातर काला धन होता है। यों काला धन सत्ता के गलियारों में घुसता है और राजकाज पर असर डालता है। फलस्वरूप काला धन बढ़ता है। जितना कालाधन बढ़ता है, उतना ही भ्रष्टाचार बढ़ता है। काला धन और भ्रष्टाचार आपस में एक दूसरे के लिए ऑक्सीजन (प्राणवायु) का काम करते हैं। किन्तु जब ऊपर से चलने वाले व्यवस्था के नीचे तक फैलाव के साथ समूची व्यवस्था में भ्रष्टाचार अपनी जड़ें जमा लेता है तब लोकतंत्र के तीनों प्रधान स्तंभ भी भ्रष्टाचार के कप्रभाव से बचे हए कैसे रह सकते हैं? इस प्रकार राज्य चलाने की विधि और व्यवस्था भी भ्रष्टाचार से ग्रस्त बन जाती है। भ्रष्टाचार फैलता है तो चरित्र गिरता है और ज्यों-ज्यों भ्रष्टाचार अधिकाधिक फैलता जाता है, त्यों-त्यों चरित्र-पतन की गहराई भी बढ़ती जाती है। रोग जितना जटिल, निदान उससे भी ज्यादा कठिन और चिकित्सा तो भगीरथी प्रयत्न ही मानिए। आज भ्रष्टाचार ऊपर के वर्गों में थोक से चलता हआ नीचे तक छितर गया है-विनोद में भ्रष्टाचार को शिष्टाचार कहा जाने लगा है तो असल में इसे कार्य शुल्क माना जा रहा है। भ्रष्टाचार का सभी ओर, सभी क्षेत्रों में फैलाव इस कदर बढ़ रहा है कि 359
SR No.002327
Book TitleSucharitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
PublisherAkhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
Publication Year2009
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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