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________________ धनबल, बाहुबल व सत्ता की ताकत का सदुपयोग चरित्रवान ही करेगा नियंत्रण - शून्य विज्ञान ने दी विलासिता और संहारक शक्ति : मानव समाज के लिये विज्ञान पूरी तरह से खोटा सिक्का साबित हुआ है - ऐसा कतई नहीं है और अब तक वैज्ञानिक क्षेत्र की जो उपलब्धियां हैं, वे पूरी तरह विकृत और घातक ही हैं - ऐसा भी नहीं है | ज्ञान-विज्ञान का क्षेत्र कभी-भी मानव विरोधी नहीं होता, बशर्ते कि मानव ही उसका अपनी स्वार्थपूर्ति के लिये शोषण न करें। विज्ञान के साथ मानव की स्वार्थ वृत्ति ने ही भयंकर खेल खेला है और उसका दुरुपयोग ही अधिक किया है। भला करने वाले साधन का भी दुरुपयोग करके उसे बुरा करने वाला बनाया जा सकता है, फिर उस साधन को कोसने से बुराई के कारण सामने नहीं आएंगे, क्योंकि बुरा तो उसे कहना होगा जिसने अच्छे साधन का दुरुपयोग किया। एक उदाहरण से इसे समझें । महात्मा गांधी के हाथों तकली का प्रयोग बढ़ा। चरखा सभी हमेशा साथ नहीं रख सकते और उन्होंने सूत कातने को एक नैतिक मर्यादा प्रदान की, अतः तकली का प्रयोग उस समय बहुत बढ़ा भी। तो तकली की खास बात बतावें । तकली का काम शुद्ध रूप से सूत कातना है और यह अच्छा प्रयोग है। अब ऐसे शुद्ध साधन का दुरुपयोग करके कोई दुष्ट व्यक्ति उस तकली को किसी की आंख में घुसेड़ कर उसे फोड़ दे तो इसमें तकली का क्या दोष होगा? दोष है पूरा उस दुष्ट : व्यक्ति का। यही तर्क विज्ञान के साथ भी लागू होता है। यह नहीं है कि विज्ञान का प्रयोग मानव समाज की सुख शान्ति के लिए अब तक हुआ ही नहीं है । पहिए से लेकर कम्प्यूटर तक विज्ञान ने आवागमन, सूचना, सम्पर्क, व्यापार, व्यवसाय आदि के इतने सशक्त साधन दिए हैं कि जिससे मानव समुदाय का सम्पर्क ही घनिष्ठ नहीं हुआ है, बल्कि एकता, सहयोग आदि के सूत्र भी मजबूत हुए हैं। अणु शक्ति की ही बात करें। इसके बारे में सामान्य यही है कि अणु से बनने वाले बम एवं अन्य अस्त्र सर्व संहारकारी हैं और यह विज्ञान की घातक उपज है। इसमें भी रहस्य वही है । अणु के शान्तिपूर्ण उपयोग के भी अनेक साधन हैं और उनसे मानव जाति का काफी उपकार हो सकता है। ऐसे शान्तिपूर्ण उपयोग हो भी रहे हैं, लेकिन उनकी चाल धीमी है और आणविक अस्त्रों के उत्पादन की चाल तेज है क्योंकि बड़े राष्ट्रों के शासक अणु शक्ति के माध्यम से पूरे विश्व पर अपना दबदबा बनाना चाहते हैं। किसी भी अच्छे साधन के भी. दुरूपयोग की आशंका तब बहुत बढ़ जाती है जब उस साधन के उत्पादन व उपयोग पर व्यक्ति और समाज का नियंत्रण नहीं होता। अणुशक्ति का भी यही हाल है। इस पर स्वार्थी शासकों का नियंत्रण है। सही सामाजिक नियंत्रण का अभाव है। सच तो यह है कि सम्पूर्ण वैज्ञानिक प्रगति पर ही कभी सही सामाजिक नियंत्रण नहीं रहा । नियंत्रण शून्य स्थिति ने ही विज्ञान के दुरूपयोग की खुली छूट दी और इस क्षेत्र में जिसकी लाठी उसकी भैंस बनती रही। फलस्वरूप वैज्ञानिक खोजों के आधार पर ऐसे साधन निकाले गए, जिनके कारण न तो विज्ञान को मानवीय चेहरा मिला और न मानव समाज की वास्तविक प्रगति हेतु वैज्ञानिक खोजों का उपयोग हुआ। अधिकांश में विज्ञान का जो स्वरूप मानव समाज के सामने आया उसे दो रूपों में देखा जा सकता है 1. विलासिता वर्धक : इतने सभी प्रकार के उपकरण निकले हैं जिनसे घर की रसोई से लेकर कम्पनी के दफ्तर तक आदमी को आराम ही आराम मिलने लगा है और इस आराम का ज्यादा 353
SR No.002327
Book TitleSucharitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
PublisherAkhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
Publication Year2009
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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