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श्रेष्ठ शिक्षा, संस्कार से सामर्थ्यवान वगणी व्यक्तित्व का निर्माण
पर रखा और बाहर लाया। किन्तु उसने इस बार बिच्छू को किनारे पर नहीं छोड़ा, बल्कि दूर तक ले चाकर छोड़ा। इस दौरान बिच्छू ने उसकी हथेली पर कई बार दंश दे दिए परन्तु साधु अपने स्वभाव [ से विमुख नहीं बना और उसने बिच्छू के प्राण बचा कर ही दम लिया।
दूसरा साधु पहले साधु की सारी गतिविधि ध्यानपूर्वक देख रहा था। वह कुछ समझा और बहुत नहीं समझा। उत्सुकतावश उसने अपने साथी से पूछा-'भन्ते! क्या आप जानते नहीं थे कि बिच्छू का क्या स्वभाव होता है? आप नहीं जानते थे, ऐसा मैं नहीं मानता, फिर आप बार-बार दंश खाकर भी उस जहरीले प्राणी को बचा क्यों रहे थे?' पहले साध ने उत्तर दिया-'मित्र! आप, मैं और सभी बिच्छ के डंक मारने के स्वभाव से परिचित हैं। बिच्छू का स्वभाव है डंक मारना और यह तो आप भलीभांति जानते ही होंगे कि मानव का स्वभाव क्या है और विशेष रूप से साध का स्वभाव क्या होना चाहिए?' दूसरा साधु तब भी असमंजस में था, बोला-'मैं कुछ समझा नहीं, दोनों के स्वभावों की तलना का क्या अर्थ है?' पहले साध ने बताया-'सुनो, बहुत ध्यान से सुनो कि मानव और साध का स्वभाव होना चाहिए प्राणी की रक्षा करना हर हाल में और हर कीमत पर। अब सोचने की बात यह है कि जब बिच्छू ने एक भी बार अपना स्वभाव नहीं छोड़ा तो फिर हम अपना ही स्वभाव क्यों छोड़ दें? हमारा यह दायित्व है कि हम भी अपने स्वभाव पर डटे रहें और दंश का उत्तर भी रक्षा से ही दें।' दूसरे साधु ने अपने वरिष्ठ साधु के चरण छुए और निवेदन किया-'भन्ते! अपने स्वभाव को पाने-पहचानने तथा उसका सदुपयोग करने की विलक्षण शक्ति आपको कैसे प्राप्त हुई जिससे आप दंश की कठिन पीड़ा को भी सहते रहे परन्तु अपने स्वभाव पर डटे रहे?' ___ पहले साधु ने शान्त स्वर में समझाया कि यह मेरी ही विलक्षण शक्ति नहीं है। यह शक्ति तो प्रत्येक मानव और साधु अपनी आन्तरिकता में विकसित कर सकता है। यह चरित्र विकास का सुफल है, क्योंकि चरित्र विकास के माध्यम से उत्तम संस्कार निरूपित होते हैं। उत्तम संस्कारों से श्रेष्ठ शिक्षा की ओर जिज्ञासा आकर्षित होती है तथा श्रेष्ठ शिक्षा सर्वहितैषिणी क्षमता को परिपुष्ट बनाती है। संस्कार, शिक्षा और क्षमता की भूमिका यह भी है कि उनके द्वारा चरित्र विकास को भरपूर प्रोत्साहन मिले। इन तीनों एवं चरित्र विकास की उच्चतर भूमिकाओं पर ही मानवता का निर्माण होता है तथा साधुत्व की श्रेष्ठता प्रकट होती है। ऐसी शक्ति अपने चरित्र विकास से हर कोई पा सकता है और पारम्परिक आधार पर हर कोई समूह, समाज या राष्ट्र भी चरित्र की उत्तमता के अनुरूप सर्वांगीण विकास साध सकता है।
निश्चित रूप से उत्तम संस्कार, शिक्षा एवं क्षमता मानव चरित्र का विकास करने वाले सहयोगी तत्त्व हैं, जिनकी साधना करके मानव मानवीय मूल्यों के उज्ज्वल चरित्र से सम्पन्न बन सकता है। ससंस्कारों के निर्माण की यात्रा एवं परस्परता का योगदान :
सुसंस्कारों के निर्माण का प्रश्न केवल एक व्यक्ति, एक समाज अथवा एक काल खंड के साथ ही जुड़ा हुआ नहीं होता है। वास्तव में सुसंस्कारों का निर्माण एक अनवरत यात्रा है, जो संस्कारों को परिमार्जित करती है, परम्पराओं का रूप-स्वरूप संवारती है तथा व्यक्तियों के साथ-साथ समूहों
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