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सुचरित्रम्
किन्तु वह अल्कोहल भी रोग निवारण नहीं करता, कोरी सुन्नता पैदा करता है। तम्बाकू और अफीम की खेती बंद करने की बात किसानों से तो मनवाई जा सकती है लेकिन व्यवसायियों को इसके पक्ष में लाना आसान नहीं है, क्योंकि तम्बाकू व अफीम के उत्पादों से अरबों-खरबों की कमाई की जाती है। व्यवसायी यदि इस तथ्य की चिंता करें कि इनसे करोड़ों जिन्दगियाँ तबाह हो रही हैं तो बात बन सकती है। ऐसे जहर को उगाना ही बंद कर दिया जाए तो समस्या का सदा के लिए सुखदायक समाधान हो सकता है।
सामान्य रूप से तम्बाकू (बीडी, सिगरेट, चुरुट, गुटखा, मसाला, छैनी आदि तथा अफीम, मारफीन ब्राऊन शुगर, ड्रग्ज आदि) से फैलने वाले व्यसनों से व्यक्तियों को मुक्त करने के विभिन्न उपायों पर गंभीर विचार किया जाना चाहिए तथा एक आंदोलन के रूप में उन उपायों को प्रचारित किया जाना चाहिए ताकि व्यसनों में डूबे व्यक्तियों को पुनर्चेतन किया जा सके। इस पुनर्चेतना के लिए इस प्रकार के विचार जगाए जाने चाहिए___ 1. तलब नकारें, भला विचारें - जब भी तम्बाकू व अफीम के उत्पादों की तलब लगे तो मजबूत इरादे से उसे नकार दें और विचार करें कि अपना, अपने परिवार तथा अपने संघ- समाज का भला किसमें है-नशा लेते रहने में या नशे को पूरी तरह से छोड़कर दशा सुधार लेने में?
2. ले लें संकल्प, न रखें विकल्प - जब एक बार नशा-परित्याग का संकल्प ले लें तो मजबूती रखें-न उसमें गली निकालें और न मन को चंचल बनावें। सोचें कि यह परीक्षा की बात है और किसी भी परीक्षा में विफल रह जाने से इज्जत मिटती ही है।
3. कामकाज में रहें व्यस्त, लम्बे-लम्बे सांस लें, बनें मस्त - अपने आपको किसी न किसी उपयोगी कामकाज में व्यस्त रखें ताकि तलब जोर न पकड़ सके। साथ में मुँह में सौंफ-इलायची रखें तो उस सुगंध से तलब दब जाएगी। खासतौर पर तलब के वक्त लम्बे सांस लेकर मस्त रहें और सोचें कि चाहे कुछ भी हो जाए, मैं छोड़े हुए व्यसन को वापिस गले नहीं लगाऊँगा।
त्याग दें जो मदिरा का पान, जीवन में सूर्य उगे, हो स्वर्ण विहान :
मदिरापान का मद गहन अंधकार के समान है, जब जीवन का सारा तत्त्व और सत्य दृष्टिहीन हो जाता है, अत: यदि मदिरापान त्याग दिया जाए तो निश्चय ही उस जीवन में विकास का सूर्य उदित हो जाएगा और स्वर्ण विहान में आत्मोन्नति का पथ प्रकाशित बन जाएगा। व्यसन को छोड़ देने से जीवन के अनेक सुखों को सहज ही में प्राप्त कर सकते हैं। ___ यह मदिरा पान एक आसुरी वृत्ति है, जो वर्तमान को ही नहीं, भविष्य को भी दूषित, कलुषित, विकत एवं पीडित बना देती है। इतिहास पढने वाले जानते हैं कि महाभारत कालमें कौरवों और द्वारिका के यादवों का विनाश क्यों हुआ तथा क्यों मुगलों ने अपना साम्राज्य गंवाया? मद्यपान सर्वनाश के सिवाय और कुछ नहीं करता। वर्तमान वातावरण में मदिरा के भीषण दुष्प्रभावों को भलीभांति देखा जा सकता है। कुल अपराधों (बलात्कार, लूट-पाट, हत्या, डकैती आदि) का 60 प्रतिशत मदिरा पान के कारण घटित होता है। इस व्यसन से नैतिकता और धार्मिकता का कितना नाश हो रहा
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