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________________ दुर्व्यसनों की बाढ़ बहा देती है चरित्र निर्माण की फलदायी फसल को जाना, 3. परिवार से तिरस्कृत होना, 4. समय पर कार्य करने की क्षमता का न रहना, 5. अन्तर्मानस का द्वेष से भर जाना, 6. ज्ञानतंतुओं का धुंधला हो जाना, 7. स्मृति का लोप हो जाना, 8. मति भ्रष्ट हो जाना, 9. सज्जनों के साथ सम्पर्क समाप्त हो जाना, 10. वाणी में कठोरता आना, 11. नीच कुलोत्पन्न व्यक्तियों के साथ सम्पर्क का गहरा हो जाना, 12. कुलहीनता के लक्षण पनपना, 13. शक्तियों का ह्रास होना, 14. धर्म, 15. अर्थ और 16. काम-तीनों का नाश होता है। ये दोष इस प्रकार व्यसनी व्यक्ति को अधःपतन की ओर ही धकेलते हैं। ___महाकवि कालीदास ने एक मदिरा बेचने वाले से पूछा-तुम्हारे पात्र में क्या है? मदिरा बेचने वाला भी दार्शनिक तबियत का व्यक्ति था, सो दार्शनिक शब्दावली में ही बोला-मेरे प्रस्तुत पात्र में और कुछ नहीं, केवल दुर्गुण ही दुर्गुण हैं जो तरल दशा में है कि जो भी पिए उसके भीतर वे प्रवेश कर जाएँ। सच है कि जितने भी दुर्गुण हैं, वे सभी मद के साथ हो जाते हैं। जहाँ दुर्गुणों की चांडाल चौकड़ी जमती है, वहां अध:पतन के सिवाय अन्य कौनसी दशा प्राप्त होगी? महात्मा गांधी का कथन है-मैं मदिरापान को तस्करकृत्य और वैश्यावृत्ति से भी अधिक निन्दनीय मानता हूँ, क्योंकि इन दोनों कुकृत्यों को पैदा करने वाला मद्यपान ही है। आचार्य मनु ने मदिरा को अन्न का मल कहा है। मल को पाप भी कहा है। मल मूत्र जैसे अभक्ष्य पदार्थ हैं, वैसे ही मदिरा भी है। सुरा पान प्रत्येक दृष्टि से निन्दनीय है क्योंकि सुरा सुर को भी असुर बना देती है तो मनुष्य की बिसात ही क्या? मदिरा पान से सामाजिक जीवन भी अस्त-व्यस्त हो जाता है। . ___ चारित्रिक अध:पतन का आरंभ इसी मदोन्मत्तता या कि मदिरा पान से होता है। ऐसा कोई दुर्गुण या अपराध नहीं है, जो मदिरा पान से उत्पन्न न होता हो। इस आधुनिक युग में जब सभ्य कहलाने वाले व्यक्ति मदिरापान करते हैं तब उनकी सारी सभ्यता छूमन्तर हो जाती है और वे पागल बन कर एक दूसरे के साथ अमानवीय व्यवहार करते हुए देखे जाते हैं। ऐसा कोई व्यक्ति हो जो किसी भी । परिस्थिति में धर्म से विमुख नहीं हो सकता, कर्त्तव्य से च्युत नहीं हो सकता या कि नीति का परित्याग नहीं कर सकता, उसे भी यदि मदिरा पिला दी जाए तो वह धर्म, कर्तव्य, नीति सब को भुला देगा। ऐसा कोई अकार्य नहीं जिसे मदिरा पीने वाला न कर सके। एक शब्द में कहें तो चारित्रिक अधःपतन की माँ यह मदिरा है और सारे व्यसन उसी के चेले चपाटे हैं। दुर्व्यसनों का पल्ला पकड़ा कि जीवन कष्टों में जकड़ा: . ___कोई भी दुर्व्यसन किसी के जीवन में इस तरह प्रवेश करता है कि उसके घुस आने की आहट तक नहीं होती। समझें कि एक निर्व्यसन युवक अपने एक मित्र के यहाँ गया। वहाँ मित्र मंडली बैठी हुई थी और विनोद की बातें चल रही थी। उस मंडली में एक व्यक्ति ऐसा था जो ड्रग्ज, (नशीली पुड़िया) लेता था। बातों ही बातों में उसने एक पुड़िया निर्व्यसन युवक को खिला दी। पहली खुराक थी, उसे अच्छी लगी-जैसे मन में खुशी की लहरें उठ रही हों और सारा शरीर हवा में उड़ रहा हो। एक अजीब-सा अनुभव था। फिर तो वह पुड़िया वाला व्यक्ति सब समझ गया। उसने निर्व्यसन व्यक्ति के चरित्र पर अनजाने में हमले शुरू कर दिए। थोड़े ही समय में उसने उसे उस स्टेज तक पहुँचा दिया, जब समय पर पुड़िया न मिले तो जैसे उस की नसें तड़कने लगती और वह बेचैन हो 315
SR No.002327
Book TitleSucharitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
PublisherAkhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
Publication Year2009
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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