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________________ सुचरित्रम् अपने आपको स्वयं देखें- देखते रहें और दृढ़ता के सूत्रों को जोड़ते रहें आधुनिक युग में प्रचार का सही नेटवर्क सफलता की गारंटी होता है चरित्र निर्माण से प्राप्त होने वाले देवत्व पर सोचते रहिए 39. चरित्रबल से ही घूमेगा शुभंकर परिवर्तन का चक्र कैसे जागेगा चरित्र बल और कैसा होता है शुभंकर परिवर्तन ? धर्म को भेदभाव विहीन अखंड मानें और उसे जीवन से जोड़ें अभियान के सहभागियों के लिए चरित्र निर्माण विचार व आचार संहिता हो सकती है। चरित्र निर्माण जीवन की कला एवं चरित्र विस्तार विश्व का एकीकरण निश्चय मानें कि चरित्र बल के लिए कोई भी साध्य असंभव नहीं 40. जीवन निरन्तर चलते रहने का नाम 'ऐ जिन्दगी, काश हमने भी तुझे जिया होता' यह कहकर बाद में पछताना न पड़े जब चलना सीखा जाता है, तब समझ में आती है जीवन की गति जीवन का मूल मंत्र है- उठो, चलो, चलते रहो- साथ न हो तो अकेले ही चलो पर चलो चलने का अर्थ है- सर्वोच्च सत्य की अहिंसक शोध में लगे रहो चलते रहना है कर्म करते रहना और कर्म करते रहना जीवन का धर्म है आप चलते रहें और चरित्र निर्माण की यात्रा अनवरत चलती रहे मानव जीवन पाने की सार्थकता है - चरेवेति:- चरेवेति: चलते रहो, चलते रहो 41. युवाओं, उठो और इस विजय अभियान को सबल नेतृत्व दो ! अस्तित्व, व्यक्तित्व व वर्चस्व की सीढ़ियां एवं चरित्र विकास के सोपान यौवन कहता है- मुझे गिरा के भी अगर तुम संभल सको तो चलो ! विवेक और शक्ति का सम्मिश्रण चाहिए यौवन के वेग में एक आदर्श युवक या युवती में किन चारित्रिक गुणों की अपेक्षा होती है ? चरित्र निर्माण के महत्कार्य में ईश्वरत्व का दर्शन करे यौवन युवानों, इस विजय अभियान को अपना नेतृत्व दें - सफल बनावें 42. चरित्र के शिखर पर पहुंचने का रहस्य चरित्रलीनता के शिखर पर पहुँचने वाले ध्यान की पृष्ठभूमि आगम साहित्य में ध्यान का विवेचन मार्मिक एवं गूढ़ है जैन परम्परा की ध्यान साधना एवं अन्य ध्यान धाराएँ आचार्य नानेश द्वारा प्रवर्तित आत्म-समीक्षण ध्यान साधना जीवन के उत्थान में ध्यान की भूमिका एवं शक्ति का रूपांतरण ध्यान का ज्ञान-विज्ञान तथा स्वयं की स्वयं द्वारा शोध आत्म-बोध, आत्म-आरोग्य तथा आत्म-पुरुषार्थ का आरंभ ध्यान से चरित्र का वैश्वीकरण और मानव जीवन में महानता प्रत्येक व्यक्ति संसार की इकाई है तथा सारा संसार उसका अपना है XXXII 514 516 518 520 522 523 525 531 532 535 537 540 542 543 544 546 547 550 € 552 554 556 557 559 561 562 562 564 566 569 570 572 574 576 577
SR No.002327
Book TitleSucharitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
PublisherAkhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
Publication Year2009
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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