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मानवीय मूल्यों का प्रेरक धर्म ही
उज्जवल चरित्र
चरित्र निर्माण और धर्म : एक-दूसरे के पूरक
एक सद्गृहस्थ थे। जब उनकी पत्नी का देहान्त हो
गया तब उन्होंने सोचा कि घर का सारा काम अपनी चार पुत्रवधुओं में बांट देना चाहिए ताकि घर की सुव्यवस्था यथावत् बनी रहे। उनके मन में आया कि किस बहू को कौनसा काम दिया जाए-इसका निर्णय तो पहले ही करना होगा। उन्होंने सोचा कि कार्य का विभाजन योग्यता एवं क्षमता के अनुसार ही किया जाना चाहिए, नहीं तो सुव्यवस्था के स्थान पर ऐसी अव्यवस्था मच जाएगी कि जिसे फिर सम्भाल पाना ही मुश्किल हो जाएगा। योग्यता एवं क्षमता की परख के लिये उन्होंने मन ही मन एक योजना निश्चित कर ली और उन्होंने अपनी चारों बहुओं को एक साथ बुलावा भेजा।
सद्गृहस्थ सद्व्यवहार में विश्वास करते थे, अतः उन्होंने अपनी चारों बहुओं के सामने न तो कोई भूमिका बांधी और न ही उन्होंने अपना उद्देश्य प्रकट किया। उन्होंने किया तो केवल यह कि प्रत्येक बहू को चावल के सिर्फ पांच-पांच कण (दाने) दिये और कहा कि वे पांच साल बाद सबसे चावल वापिस चाहेंगे। सब बहुएं हक्कीबक्की रह गई कि इसका मतलब क्या है? सब बहुएं अपने-अपने कक्षों में लौट गई।
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