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________________ संस्कृति, सभ्यता साहित्य और कला बुनियादी तत्व हुआ है, बल्कि इस के संबंध और प्रभाव से पूरा विश्व प्रभावित होता है। इतना ही नहीं, चरित्र निर्माण के छोटे से प्रयास के पीछे भी विश्वस्तर का उद्देश्य होना चाहिये क्योंकि अन्ततः सारे विश्व में चरित्र का विकास प्रसारित होगा तभी वसुधैव कुटुम्बकम् का साध्य साधा जा सकेगा। यह दूसरी बात है कि इस विराट साध्य की सम्पर्ति में कितना समय लग जाए, लेकिन साध्य तो सदैव विराट ही रहना चाहिए ताकि तदनुसार योग्यता एवं कर्मठता का प्रयोग करने के प्रयास किए जा सके। ___ जब विश्व स्तर का साध्य होगा तो संस्कृति आदि का गहरा अध्ययन अनिवार्य है, क्योंकि संस्कृति आदि के उत्थान-पतन से ही आकलन किया जा सकेगा कि कौनसे तत्त्व संस्कृति, सभ्यता, साहित्य, कला आदि को सार्वजनीन एवं सर्वोपयोगी बनाने में सहायक होते हैं। उन तत्त्वों को हमें अपने आचरण में स्थान देना होगा जो चारित्रिक गुणों के रूप में प्रस्फुटित हो सकेंगे। अब तक हम यह जान चुके हैं कि चरित्र संस्कृति, सभ्यता का जनक भी होता है तो उनकी उपज भी। ये अन्योन्याश्रित चलते हैं। सभ्यता आदि का सम्यक् विकास तभी संभव होगा, जब व्यक्ति और समाज का चरित्र परिपक्व बने तथा परिपक्व चरित्र सम्पन्नता का समाज पर जो व्यापक सुप्रभाव होगा, उसी के फलस्वरूप श्रेष्ठ संस्कृति आदि का निर्माण हो सकेगा। इस दृष्टि से अनिवार्य है कि विश्व के इतिहास को जानें, सांस्कृतिक मूल्यों को पहचानें तथा विश्वात्मक सभ्यता से सृजन हेतु चरित्र निर्माण का शंखनाद करें। 259
SR No.002327
Book TitleSucharitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
PublisherAkhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
Publication Year2009
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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