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________________ संस्कृति, सभ्यता साहित्य और कला बुनियादी तत्व अभिव्यक्त हो गई कलाकृतियां दीर्घकाल तक उन्नत चरित्र, संस्कारगत श्रेष्ठता तथा अक्षरों के मर्म की याद दिलाती रहती हैं। कला का जब सृजन होता है तब संस्कृति, सभ्यता, साहित्य का तत्कालीन प्रभाव उस पर अवश्य ही पड़ता है, बल्कि एक बार सृजित होकर कलाकृतियां तत्कालीन प्रभाव की स्थाई साक्षी बनी रहती है। उससे इतिहासकार प्रेरणा लेते हैं और घटनाओं की ऐतिहासिकता को सिद्ध करने के लिए उन्हें प्रमाण बनाते हैं। इस प्रकार कला और शिल्प दीर्घावधि तक चरित्र निर्माण के सभी तत्त्वों का मार्ग-दर्शन करते हैं। __ आज भी कला और शिल्प के स्मारक उस प्राचीन इतिहास को प्रमाणित करते हैं, जिसकी प्रामाणिकता परखने का अन्य कोई स्रोत नहीं है। उदाहरण के लिये राजस्थान के किन्हीं प्राचीन स्थलों की चर्चा की जा सकती है जिनमें मन्दिर, शिला लेख, तीर्थस्थल आदि शामिल हैं। श्री आर. वी. सोमानी द्वारा लिखित 'जैन इन्स्क्रिप्सन्स ऑफ राजस्थान में बताया गया है कि नोह (भरतपुर) में प्राप्त शिलालेख दूसरी शताब्दी ई.पू. का है और उसमें श्रमण' तथा 'निग्रंथ' शब्दों का प्रयोग हुआ जो जैन साधुओं के लिए प्रयोग में आने वाले पारिभाषिक शब्द है17वीं से 10वीं शताब्दी तक के शिलालेख हटूंडी-अजमेर (प्रतिहारों व राष्ट्रकूटों से संबंधित), अजमेर, नाडोल, जालोर (चौहान शासकों से संबंधित) तथा आयड़-उदयपुर (प्राचीनतम सभ्यता से संबंधित) में उपलब्ध हैं। चित्तौड़गढ़ का कुमारपाल चालुक्य से संबंधित शिलालेख 1150 ईस्वी का है। ओसियां, मंडोर, किराडू, भीनमाल, जालोर, आयड़ और चित्तौड़ आदि में तत्कालीन सामाजिक तथा आर्थिक स्थितियों को दर्शाने वाले शिलालेख भी हैं जो 7वीं से 13वीं शताब्दी तक के हैं। ओसवाल जाति के विकास से संबंधित शिलालेख भी 8वीं से 10वीं शताब्दी के बीच के हैं। चित्तौडगढ की तरह अन्यत्र भी प्राचीन मन्दिरों के साथ मूर्तियां, कीर्तिस्तंभ, देव कुलिकाएं, हस्तिशालाएं आदि भी उपलब्ध हैं जो ऐतिहासिक प्राचीनता का परिचय देती हैं। चित्तौड़ के कीर्तिस्तंभ की तारीख 861 ई. पू. अंकित है। इसी प्रकार की कैलाशचन्द्र जैन ने भी अपनी पुस्तक 'एनसंट सिटीज एंड टाउन्स ऑफ राजस्थान' में राजस्थान के प्राचीन ऐतिहासिक नगरों-कालीबंगा, बैराठ (विराट नगर), नगरी (माध्यमिका) जो दूसरी से पहली शताब्दी ईसा पूर्व में महिमामंडित रही तथा पुष्कर नगर, नालीसर, रायर, झालरापाटन, गंगधार आदि नगरों का भी उल्लेख है जिनका अस्तित्व 5वीं शताब्दी का है। छोटीसादड़ी (जिला चित्तौड़गढ़) का भंवर माता मन्दिर भी 5वीं शताब्दी का है। चित्तौड़गढ़ के नगरी ग्राम में ही पूर्व माध्यमिका गणराज्य से पातंजलि (150 ई. पू.) का संबंध सिद्ध किया गया है और दूसरी शताब्दी ई. पू. में ग्रीक-आक्रमण हुआ था। राजस्थान के ऐसे अनेकानेक कला तथा शिल्प से संबंधित स्थल हैं जहां की ऐतिहासिक गरिमा आज भी सिद्ध होती है। चित्रकला शिल्प और भाषा पर बाहरी संस्कृतियों का प्रभाव तथा चरित्र निर्माण का पक्ष : ___प्राचीनकाल से भारतीय जीवन का चित्रण चित्रकला के माध्यम से करने की परम्परा रही है। सिंधु सभ्यता की चित्रकारी करीब 5 हजार वर्ष पुरानी मानी गई है। चित्रांकन में ज्यामितिक 257
SR No.002327
Book TitleSucharitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
PublisherAkhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
Publication Year2009
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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