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संस्कृति, सभ्यता साहित्य और कला बुनियादी तत्व
शायद कुछ होगा नया गठन आश्रय देंगे हमको अपने जर्जर पर अपराजेय चरण।
15. क्या हुआ दुनिया अगर मरघट बनी
अभी मेरी आरवरी आवाज बाकी है हो चुकी हैवानियत की इन्तिहा आदमियत का मगर आगाज बाकी है।
16. यह दर्द
विराट जिन्दगी में होगा परिणत है तुम्हें निराशा फिर तुम पाओगे ताकत उन अंगुलियों के आगे कर दो माथा नत जिनके छू लेने भर से फूल सितारे बन जाते हैं ये मन के छाले!
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17. ओ, मेरी पागल परछाई,
तेरा मोह व्यर्थ है बिल्कुल अब आगे हैं
और जहाभरी घाटियां जिनके हर पत्थर के नीचे मौत छिपी है।
18. न्याय-अन्याय,
सदासद, विवेक-अविवेक कसौटी क्या है? आरिवर कसौटी क्या है? और लहरें थपकी देकर तुम्हें सुला देती हैं सो जाओ, योगेश्वर जागरण स्वप्न है, छलना है, मिथ्या है!
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