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सुचरित्रम्
तीनों द्वारों की क्रियाशीलता तो निरन्तर बनी ही रहती है। समस्या यही है कि उस क्रियाशीलता को अशुभता के क्षेत्र से निवृत्त करें तथा शुभता के क्षेत्र में प्रवृत्त बनावें। इस समस्या का ही समाधान रहा हुआ है तीनों द्वारों की पवित्रता में। इस त्रिरूपी पवित्रता को प्राप्त करने का ही मार्ग है आचार शुद्धि तथा चरित्र निर्माण, जिसके लिये समुचित पुरुषार्थ की अपेक्षा रहती है। अब यह पुरुषार्थ क्या है? संयम का पुरुषार्थ-आत्मनियंत्रण का पुरुषार्थ, जिसका फल प्राप्त होगा आत्मशान्ति के रूप में, सामाजिक सद्भावना के रूप में तथा समता का साध्य पाने के रूप में।
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