________________
अनुक्रमणिका
1. रहस्यों, संभावनाओं तथा प्रत्यक्ष उपलब्धियों से भरा है यह संसार ! • क्यों जानना चाहते रहे हैं सब संसार के छिपे हुए रहस्यों को?
• चरित्र की चमक से चमचमाते व्यक्तित्व आग में से होकर निकलते हैं !
• संसार के रहस्यों को भेदने की जिज्ञासा का रोमांच ।
उभरती हुई चरित्रशीलता के समक्ष चुनौतियाँ ही चुनौतियाँ । रहस्य, जिज्ञासा एवं साधना के साहसिक चरण ।
रहस्योद्घाटन हेतु प्रयास, दृढ़ता एवं इच्छाशक्ति का मनोविज्ञान ।
) चरित्र सम्पन्नता के तीन चरण माप सकते हैं पूरे संसार को ।
• परन्तु पहले इस संसार को तो समझिए कि वह है क्या और कैसा है?
• क्या संसार और सांसारिकता में भेद करना जरूरी नहीं?
• संसार अर्थात् मनुष्य लोक नहीं, क्योंकि संसार में तो चारों गति के जीव हैं?
• यह संसार चरित्रशील पुरुषों को ललकारता रहा है, आज भी ललकार रहा है।
• सच्ची उपलब्धियाँ वे ही हैं जो ज्ञान-विज्ञान के नए द्वार खोलती है।
• ज्ञानियों एवं दार्शनिकों की गूढ़ दृष्टि ने दिखाई आध्यात्मिक राहें । वैज्ञानिकों की भौतिक उपलब्धियाँ आश्चर्यजनक रही हैं।
• सच में यह संसार बहुविध चरित्र का ही विशाल रंगमंच है। • चरित्र ही बनाता है बिम्ब, छवियाँ और महान विभूतियाँ ।
• संसार एवं चरित्रबल सदा एकीभूत रहे हैं और रहेंगे, तभी संसार चलेगा।
2. विश्व रचना, व्यवस्था का परिदृश्य एवं संतुलन की सुई
• दो तत्त्वों की सत्ता के आधार पर ही रचित एवं संचालित है विश्व |
• उपयोग लक्षण है जीव का, जो कभी अजीव नहीं होता।
• सूक्ष्म जीवों की संवेदनशीलता एवं उनके संरक्षण से मानवीय गुणों का विकास।
• इस धरती का रक्षा कवच है पर्यावरण, अतः रक्षणीया है प्रकृति ।
व्यक्ति ही है सकल विश्व एवं उसकी समस्त व्यवस्था की धुरी । व्यक्ति, विश्व एवं अनेकानेक संगठनों की गत्यात्मक कार्यप्रणाली । • शांति तथा सहयोग का मार्ग है मुक्त सम्पर्क, स्वतंत्रता एवं लोकतंत्र • प्रतिबंधित सम्पर्क सूत्र फैलाते हैं गलत समझ, कटुता, वैर और हिंसा ।
• व्यक्तिगत जीवन के अनेक पक्ष तथा संतुलन की सुई व्यक्ति के हाथ ।
• तभी तो दिखते हैं प्रत्येक व्यक्ति के अपने-अपने सूर्खमुखी और अपने-अपने केक्टस । • व्यक्ति को ही पहले अपने भीतर बैठे विकारों के राक्षस से लड़ना होगा ।
• विश्व एवं व्यक्ति के बीच जितना अधिक सामंजस्य, व्यवस्था उतनी ही सुचारू ।
3. मनुष्य ही है समस्त व्यवस्था का सूत्रधार, संचालक एवं संवर्धक
मानव तन एवं जीवन की सार्थकता है मानवता को आत्मसात् करने में
6
7
8
9
9
11
12
13
14
15
16
16
17
18
21
23
24
25
27
28
29
30
31
31
3333333
1
3
4
5
32
35
36
XXIII