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चरित्र निर्माण का पारम्परिक प्रवाह
एवं उसका सैद्धांतिक पक्ष
प्रेरक चरित्रों से बनती है विराट संस्कृति व सभ्यता
राजा हरिशचन्द्र की कथा सभी जानते हैं। सपने में
" वचन देने पर भी उन्होंने अपने समूचे राज्य को दान में दिया तथा सामान्य जीवन जीने की दृष्टि से वे अपनी महारानी तारा तथा राजकुमार रोहित के साथ अपने राज्य की सीमा से दूर अन्य राज्य में चले गए। किन्तु उनकी परीक्षा का काल तो उस के बाद शुरु हुआ। महारानी तारा ने एक ब्राह्मण के घर में अपने सुकोमल पुत्र रोहित की देखरेख करते हुए जब दासी की नौकरी की तो वहां उन्हें क्या-क्या भुगतना पड़ा-यह आंसुओं से भरी कहानी है। उधर राजा हरिशचन्द्र को चाकरी मिली एक चाण्डाल के यहां, जिसने उन्हें श्मशान में नियुक्त किया कि वे अन्तिम क्रिया हेतु शवों को लाने वालों से कर वसूले। परीक्षा की अति संकटमय घड़ी तो तब उपस्थित हुई जब सर्पदंश से मृत्यु पाए अपने पुत्र रोहित का शव लेकर अकेली ही अन्तिम संस्कार हेतु तारा श्मशान पहुंची। तारा के पास कर देने को कुछ नहीं था और हरिशचन्द्र ने चाण्डाल की चाकरी में कर्त्तव्यनिष्ठ बन तारा को पहचान कर भी नहीं पहचाना, पुत्र के मृत्यु कष्ट के आंसुओं को खून का चूंट पीकर रह गए, लेकिन तारा को कर चुकाने का हठ करने
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