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सुचरित्रम्
को कभी धूल-धुसरित नहीं बना सकते हैं। इन गुणों की पृष्ठभूमि में सदैव चरित्र बल ही प्रधान आलम्बन होता है। आधुनिक युग की चरित्र सम्बन्धी दो विडम्बनाएँ
संसार के पटल पर से जब राजतंत्र या अधिनायक तंत्र मिटने लगे तो नई शासन-प्रणाली का जन्म हुआ लोकतंत्र के रूप में। लोकतंत्र अर्थात् जनता का, जनता के द्वारा, जनता के लिये राज (गवर्नमेंट ऑफ दी पीपुल, बाइ दी पीपुल एंड फॉर दी पीपुल)। लोकतंत्र आम आदमी को समान अधिकार देने वाली अच्छी शासन प्रणाली मानी गई, लेकिन राजनीति में जब चरित्रहीनता समाने लगी तो इसी प्रणाली का दुष्प्रयोग किया जाना प्रारंभ हो गया। एक-एक आम आदमी की आवाज सुनकर उसकी समस्याओं का हल निकालने की बजाय लोकतंत्र के नाम पर जन प्रतिनिधि शासक अपने लिये वोटों की शतरंज जमाने लगे। यह दुष्प्रयोग चरित्रहीनता के कारण शुरू हुआ तो इसका दुष्परिणाम भी चरित्रशीलता पर आघात के रूप में सामने आने लगा।
लोकतंत्रीय प्रणाली के बिगाड के कारण चरित्र सम्बन्धी दो विडम्बनाएँ सामने आई हैं जो चरित्र बल पर सीधा आघात लगाने वाली साबित हो रही हैं। ये दो विडम्बनाएँ हैं - (1) सच्चरित्र का चरित्र हनन (केरेक्टर एसोसिऐशन)- लोकतंत्रीय प्रणाली से एक नया बदलाव आया। यहाँ की भारतीय परम्परा में किसी को उसकी योग्यता, प्रतिभा आदि के अनुसार पदासीन करने का प्रस्ताव व समर्थन सदा दूसरे करते रहे हैं, लेकिन इस प्रणाली में स्वयं का प्रस्ताव व समर्थन स्वयं को ही करना पड़ता है अर्थात् चुनाव में खड़ा होने वाला उम्मीदवार अपनी खूबियाँ खुद ही बताता है और उसे समर्थन देने की अपील भी वह खुद ही करता है। इस होड़ में ही चरित्रहनन का अर्थ है कि एक सच्चरित्र व्यक्ति पर भी अपने स्वार्थ के लिये झूठे आरोप लगाए जाए, गलत प्रचार किया जाए और एक अच्छे भले व्यक्ति को बदनाम कर दिया जाए। राजनीति में यों तो पग-पग पर सत्ता स्वार्थ के लिये चरित्र हनन का क्रम चलता रहता है, लेकिन खास तौर पर निर्वाचन के समय में चरित्रहनन का क्रम तेज हो जाता है। अधिकांश जनता के अनपढ़ और अनजान होने के कारण चरित्रशीलता अप्रतिष्ठित होती रहती है। सच हमेशा छिपा नहीं रहता, फिर भी इस दुष्प्रवृत्ति से चरित्रशीलता पर आघात तो लगते ही हैं। इस प्रवृत्ति पर कड़ी रोक लगनी चाहिए क्योंकि चरित्र हनन का प्रयोग एक हथियार के रूप में किया जा रहा है। यह अति निन्दनीय है। (2) दूसरी विडम्बना है- दुष्चरित्र का महिमामंडन (ग्लोरीफिकेशन)- जो चरित्रहीन है यानी दुष्चरित्र है, अपराधी है, तस्कर है, माफिया है और जनहितों का शत्रु है, वही अपने धन-बल, भुज-बल और छल-बल से अपने को चरित्रशील बता कर एक सच्चरित्र पुरुष की महिमा से अपने को मंडित करवा लेता है। भोली जनता इस तरह के प्रचार के फेर में भी भ्रमित हो जाती है। ऐसे विरोधाभासी प्रचार के कारण आम आदमी अच्छे व बुरे व्यक्ति का फर्क आंकने में भूल करता रहता है और अपने वोट के पुरचोग से अपने शोषकों तथा उत्पीड़कों को ही अपने प्रतिनिधि चुन लेता है।
चरित्रहनन और महिमामंडन- इन दोनों दुष्प्रवृत्तियों को सामान्यजन को भ्रमित करने के लिये आजमाया जाता है और हथियार के रूप में इनका प्रयोग होने से चरित्रशीलता को आघात सहने पड़ते
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