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सद्भावना के साथ......
सुचरित्र के अभाव में
खा रहे अंधकार में
जो ठोकरें और टक्करें
और
अहं और आग्रह में उलझ रहे हैं.......
विवाद और विषाद में फंसे हुए हैं.......
अशांति और असमाधि के 'चक्रव्यूह से
निकल नहीं पा रहे हैं.....
उन थके, हारे, बेसहारे पथिकों को ......
जो चाहते हैं शांति.......
जो चाहते हैं शक्ति.....
जो चाहते हैं सफलता.......
वे पाएं सुचरित्र से शांति
वे पाएं सुचरित्रं से शक्ति
वे पाएं सुचरित्रं की सफलता ।
तो सार्थक होगा
यह प्रयास हमारा
सफल होगा
यह विश्वास हमारा
और
होगा
यह प्रकाश हमारा
इन्हीं सद्भावना और शुभकामनाओं के साथ !
आचार्य विजयराज
XXI