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________________ विविधता में भी चरित्र की आत्मा एक और उसका लक्ष्य भी एक निरपेक्ष चिन्तन का फल विचार समता में ही प्रकट होगा, किन्तु यदि उस चिन्तन में दंभ, हठवाद या यश लिप्सा की बुराई घुस जाए तो वह विचार संघर्षशील बनता है, अन्यथा नहीं। ऐसे संघर्ष का निवारक है, जैन दर्शन का अनेकान्तवाद।' ... वर्तमान विश्व में वैचारिक संकट के लिये अनेकान्तवाद एक अमृतौषधि है। आज मुख्य विवाद यही है कि प्रत्येक वाद या विचार स्वयं को ही सम्पूर्ण मानता है-सत्य मानता है तथा अन्य सभी को मिथ्या। तो यह वैचारिक हठवाद हो गया और हठ में सत्य के दर्शन नहीं होते। आपेक्षिक दृष्टि से सामान्यतया यह माना जाना चाहिये कि प्रत्येक वाद या विचार में कोई न कोई ग्राह्य तत्त्व हो सकता है। इसका यह अर्थ हुआ कि किसी भी वाद या विचार के प्रति पूरी तरह से आंखें बन्द नहीं कर लेनी चाहिए और न ही बिना जाने उसका विरोध किया जाना चाहिये। होना यह चाहिए कि प्रत्येक वाद या विचार का सम्मान करें, उसमें रही हुई उपादेयता को शोधे तथा मिल-बैठकर समन्वयात्मक दृष्टिकोण को विकसित करें। यही विचार समता तथा समता के माध्यम से सत्य दर्शन का मूल है। ... विचार संघर्ष को समाप्त करने के समान ही जैन दर्शन में स्वार्थ संघर्ष को कम करने या मिटाने के उपायों पर भी सम्यक् प्रकाश डाला गया है। अहिंसा उसकी आधारशिला है। अहिंसा • के सूक्ष्म विवेचन के साथ एक ऐसी आचार संहिता की रचना होती है जो व्यक्ति एवं समाज के जीवन संचालन की नियंत्रक बनाई जा सकती है। ... व्यक्तिगत एवं समाजगत जीवन के स्वस्थ स्वरूप प्रदान करने के लिये यह आवश्यक शर्त है कि उसमें फैल रहे विचार व आचार व संघर्षी को कम किया जाए तथा धीरे-धीरे मिटाया जाए। यही समता स्थापना का महत्त्वपूर्ण कदम होगा (समता दर्शन और व्यवहार, पृष्ठ 55-58)। विचार व आचार में समता से ही सर्वत्र समतामय वातावरण बन सकेगा तथा वह वातावरण निरन्तर की जागरूकता के सर्वदा भी बना रह सकेगा। समता का अर्थ है पहले समतामय दृष्टि बने क्योंकि यही दृष्टि सौम्यतापूर्वक कृति में उतरती है। इस तरह समता सर्वांग रूप से समानता की वाहक बन सकती है समता कारण रूप है तो समानता कार्य रूप। जीवन में जब समता का प्रवेश होता है तो सारे प्राणियों के प्रति समभाव का निर्माण होता है। यही समता चरित्र निर्माण का ध्येय बननी चाहिये। चरित्र गठन से अच्छाई पनपेगी और अच्छाई मानव एकता का आधार बनेगी। मानव एकता मानवीय समता में रूपान्तरित हो सकेगी। 161
SR No.002327
Book TitleSucharitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
PublisherAkhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
Publication Year2009
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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