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________________ विविधता में भी चरित्र की आत्मा एक और उसका लक्ष्य भी एक के विकास तथा व्यक्त्वि के विस्तार में अधिक सहायक होते हैं और जिनमे व्यक्ति के चरित्र निर्माण का अथवा उसकी चरित्रशीलता का तुरन्त और तेज असर हो सकता है। सबसे पहले परिवार को लें। व्यक्ति की सबसे पहली क्रीड़ा भूमि, शिक्षा भूमि और कर्म भूमि परिवार की भूमि ही होती है। परिवार के पास कोई लिखित विधान नहीं होता, उसका कार्य स्थापित परम्पराओं और सदस्यों के चरित्र बल के आधार पर ही चलता है। परिवार की जड़ खून के रिश्ते में जमती है, परम्पराओं में पनपती है, फिर भी कई बार उसके सदस्यों की चरित्रहीनता के कारण परिवारों की दुःखान्तिकाएँ सामने आती है। आज तो संयुक्त परिवार टूटते जा रहे हैं और एकल परिवारों में भी विश्वास तथा शान्ति का माहौल बिगड़ रहा है। तभी तो तलाक का ग्राफ गणित में ऊपर चढ़ता ही जा रहा है। मतलब कि परिवार का घटक आज संकटग्रस्त है। ___परिवार से आगे बढ़ें तो उन संगठनों को लें जिनके साथ प्रत्येक व्यक्ति का परोक्ष या अपरोक्ष सम्बन्ध रहता ही है। इनमें सामाजिक, जातीय, प्रादेशिक और विभिन्न प्रवृत्तियों से सम्बन्धित संगठनों को शामिल कर सकते हैं। इनसे ऊपर राष्ट्रीय संगठन अर्थात् देश का शासन तंत्र है और अन्तर्राष्ट्रीय संगठन जो मानवता की दृष्टि से राष्ट्रों को शान्ति की दिशा में मोड़ने तथा पीड़ितों व दलितों की दशा सुधार के क्षेत्रों में रचनात्मक प्रवृत्तियाँ चलाने का काम करते हैं। ___ यह निश्चित तथ्य है कि अधिकांश संगठनों के अपने विधान या संविधान तथा सभी प्रकार के नियमोपनियम होते हैं, फिर भी इनका संचालन तो व्यक्ति ही करते हैं। अतः मूलतः जब व्यक्ति चरित्रहीन हो जाता है तो उनके दश्चरित्र का कप्रभाव इन इन संगठनों पर साफ दिखाई देने लगता है। ह तब होता है जब अधिकांश सदस्यों का चरित्र शिथिल या भ्रष्ट होने लगता है। आज की राजनीति या कि नौकरशाही के संदर्भ में ऐसी विकृति खुले तौर पर दिखाई दे रही है। ऐसे में यह मानना होगा कि विभिन्न घटकों के विभिन्न क्षेत्रों में चरित्र के स्वरूप में विविधता रहेगी। कार्यक्षेत्र अनेक प्रकार के होने के कारण कार्यों का स्वरूप विभिन्न होगा तो कर्तव्यों के निर्वाह क्रम में भी विविधता होगी। किसी क्षेत्र में भावना का विशेष महत्त्व होता है, किसी में सच्चाई और ईमानदारी का अधिक महत्त्व तो किसी में कार्यकुशलता की प्राथमिकता रहती है। ___ परन्तु एक बात निश्चित है कि सभी क्षेत्रों में आवश्यक चरित्र की आन्तरिकता अर्थात् उसका मूल भाव एक ही होगा। ऐसी चरित्रनिष्ठा सर्वत्र और सर्वदा आवश्यक होती है। जहाँ कहीं भी नींव मजबूत हो तो उस पर किसी भी प्रकार का या कितना भी बड़ा भवन निर्मित किया जाए- वह सदा सुदृढ़ रहता है। कच्ची नींव पर छोटा-सा भवन भी सुरक्षित नहीं रह सकता है। इस रूप में स्वस्थ एवं कर्मठ जीवन की नींव रूप होती है चरित्र निष्ठा, निर्माण जहाँ चरित्र का प्रारंभिक रचनात्मक चरण होता है तो निष्ठा उसका स्थायित्व। चरित्र का लक्ष्य भी एक है कि विकृतियाँ टूटें तथा समता भाव फूटें! ____ जहां कहीं या जिस किसी क्षेत्र में वांछित बदलाव लाना है अथवा स्वस्थ परिवर्तन करना है तो इस कार्य को दो चरणों में पूरा करना होता है। पहला यह कि पहले की सड़ी हुई जर्जर व्यवस्था को 153
SR No.002327
Book TitleSucharitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
PublisherAkhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
Publication Year2009
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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