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विविधता में भी चरित्र की आत्मा एक और उसका लक्ष्य भी एक
समता का आदर्श ही राष्ट्र उत्थान की संजीवनी
नागरिकों में भरत चक्रवर्ती की उत्कृष्ट चरित्रशीलता
" की भूरि-भूरि प्रशंसा की भारी चर्चा थी। अनेक नागरिकों का मत था कि हमारे शासक भरत महाराज की श्रेष्ठ चरित्र निष्ठा तथा निष्परिग्रही सात्विकता को देखते हुए ऐसी प्रशंसा सर्वथा उचित है और प्रशंसा के इन स्वरों में हमें भी अपने स्वर मिलाने चाहिए। किन्तु कुछ नागरिक शंका को बढ़ावा दे रहे थे। उनका मानना था कि छः खण्डों की निरंकुश सत्ता और अपरिमित सम्पत्ति के बीच दिन-रात राज-काज में व्यस्त रहने वाला शासक निष्काम
और निरासक्त हो सकता है अथवा निष्परिग्रही रह सकता है, यह कतई संभव नहीं। परिग्रह के बीच धंसे हुए व्यक्ति की चरित्रशीलता के सम्बन्ध में ऐसी प्रशंसा चाटुकारिता के सिवाय कुछ नहीं। ऐसे नागरिकों में भी एक व्यक्ति बहुत ही मुखर था। स्थान-स्थान पर चर्चा में अग्रणी भाग लेते हुए वह भरत चक्रवर्ती की चरित्र निष्ठा का खंडन करता- शंका से आगे बढ़कर उसने प्रशंसित चरित्र की संभावना से ही नकारना शुरू कर दिया। उसका तर्क था कि अद्भुत साज-सज्जा वाले महलों, रूपवती महारानियों तथा इन्द्रियों के रसमय सुखों का भोग करना और सत्ता के
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