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________________ रत्नत्रय का ततीय रत्ल कितना मौलिक, कितना मार्मिक? चरित्रशीलता के मार्ग पर चलिए और नए सच्चरित्र समाज की रचना कीजिए आचार और चारित्र के विश्लेषण का अभिप्राय यही है कि आज जो चरित्र का संकट गहराता जा रहा है तथा जिसके कारण समाज, राष्ट्र और संसार में विषमता, अन्याय और अत्याचार का दौर है, उसमें चरित्रशीलता की मशाल जलाई जाए। विचारकों, प्रबुद्धों तथा युवाओं को आगे आना चाहिए कि वे स्वयं चरित्रशीलता के मार्ग पर चलें और अपने आदर्श से दूसरों को भी इस मार्ग पर चलने की प्रेरणा दें। उनका ध्येय बनना चाहिए कि वे एक नया अभियान चलावें, जन-जन को आन्दोलित करें तथा एक ऐसे नए समाज की रचना का संकल्प लें जहाँ चरित्र गठन का उद्देश्य और अभ्यास सर्वोपरि रहे। आज विकृतियों तथा विषमताओं की ओर बढ़ते हुए कदमों को उधर से रोकने का इसके सिवाय अन्य कोई कारगर उपाय नहीं है। ___ चरित्र निर्माण की प्रक्रिया न तो विशिष्ट होती है और न ही एकांगी। चरित्र जीवन से अलग कुछ नहीं, बल्कि कहा जा सकता है कि जीवन चरित्रमय होना चाहिए और चरित्र जीवनमय। चरित्र का शाब्दिक अर्थ ही है चलने की क्रिया। फिर चलने में शरीर की अन्य सारी क्रियाएँ सम्मिलित माननी होगी। सही तरीके से चलना सीखना है इसका यही तो मतलब होगा कि सही तरीके से उठना, बैठना, सोना, बात करना आदि प्रत्येक क्रिया पूरी की जाए। यही तो सब चरित्र है और चरित्र निर्माण की प्रक्रिया इस कारण सामान्य रूप से सतत रूप से चलती रहती है। अत: चरित्र निर्माण के मर्म को गहराई से समझने की जरूरत है कि हमारी प्रत्येक प्रवृत्ति सुघड़ और सहज हो और इतना ही नही, वह हमारी अन्तर्वृत्ति की स्पष्ट परिचायक भी हो। यों भीतर बाहर जब चाल चलन सही यानी सम्यक् हो जाता है तो सामान्य रूप से समझिए कि चरित्र निर्माण की प्रक्रिया ने गति पकड़ली है। 149
SR No.002327
Book TitleSucharitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
PublisherAkhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
Publication Year2009
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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