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चरण चमत्कार से हो सकता है कैसा भी जीवन महिमा-मंडित
साध्य-साधन और साधक के परिप्रेक्ष्य में चरित्र निर्माण
परमात्मा के चरणों में आस्था का प्रगाढ़ भाव हो, आत्मा
के चरणों में उन्नति के उत्साह का प्रभाव हो तो मंजिल कितनी ही दूभर क्यों न हो, चरण गति न रुकेगी, न थकेगी, न झुकेगी बल्कि ऐसी सुस्थिर, सुघड़ एवं सुगम हो जाएगी कि मंजिल मिल कर ही रहेगी.... ___ यों विचार तरंगें मन मानव में उद्वेलित होने लगी और प्रवाह चलता रहा.... __मन की चंचलताओं से परेशान हूँ। यह मन चंचल, आतुर एवं दुर्जय है जो मुझे खींच कर ले जाता है। वासनाओं के दलदल में यह कभी स्वादों के रस में पलता है, कभी आंखों से सुन्दर वस्तुओं दृश्य, पदार्थों को देखने में मगन होता है। वह हाथों से सुकोमल पदार्थों का स्पर्श करना चाहता है। उसकी हर चाह में कभी क्या तो कभी क्या? वह न जाने क्या-क्या चाहता रहता है? उसके चक्कर में लगता है कि मैं राह भूल चुका हूँ और मन की मंजिल को ही अपनी मंजिल मान चुका हूँ... और इस बेखबर राह में कितने मन अटके हुए हैं, भटक रहे हैं इसे ही अपना ध्येय मान कर... सोचता और अनुभव करता हूँ कि व्यक्तियों के मन इसी तरह बेखबर राह पर गमराह हो रहे हैं और