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________________ क्या विश्व की विकृत व्यवस्था मानवीय मूल्यों की मांग नहीं करती? चलते चलो चलते चलो, चलना ही जीवन धाम हो सृजन से विकास का यह चक्र नित चलता रहे दूर कर कठिनाइयाँ, उत्साहित भरता रहे। सृजन और विकास का ऐसा चक्र प्रत्येक मानव के जीवन में चले, समाज के जीवन में चले ताकि द्वन्दों और विवादों से मन दूर हट जाए। जब किसी रचनात्मक कार्य में कोई प्रवृत्त होता है तो यह स्वाभाविक हो जाता है कि उसका मन उस में तल्लीन हो जाए। ऐसी तल्लीनता में व्यर्थ विवाद को अवकाश ही कहां रह जाता है? धर्म के क्षेत्र में भी जब सृजन का क्रम चलता है तो ज्ञान-ध्यान की प्रवृत्ति चलती है और चरित्र निर्माण की दृष्टि से आचरण की प्राभाविकता बढ़ती है। जीवनी शक्तियों का सृजन ही सबसे बड़ा रचनात्मक कार्य होता है। इस में तल्लीन रहने के बाद स्वभाव सरल होता है, व्यवहार मधुर बनता है तथा सौहार्द्र एवं सहयोग की धारा व्यक्ति से लेकर सकल समाज में प्रवाहित होने लगती है । वचन, शिक्षा, संगीत, गति और विकास में जब सृजन का क्रम पल्लवित हो जाता है। तो फिर विकास का क्रम भी निराबाध तथा निरन्तर बन जाता है। विकास की निरन्तरता में चरित्र शक्ति की सुदृढ़ता बनी रहती है, निष्काम भावना पुष्पित होती है तथा मन, वचन एवं कर्म की एकरूपता का उच्चतम लक्ष्य प्रतिफलित होता है । अनवरत प्रयत्न हो कि सृजन एवं विकास चक्र नित चलता है। 91
SR No.002327
Book TitleSucharitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
PublisherAkhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
Publication Year2009
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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