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________________ सुचरित्रम् तदनुसार उन गुणों को अपनाते हुए पारस्परिक व्यवहार एवं विनिमय किया जाने लगा जो शिष्ट एवं संभ्रात माना गया। वह व्यवहार अपने अन्दर की स्वस्थ विचारणा एवं भावना के आधार पर निर्मित हुआ था, अतः चाहे वार्तालाप हो या कार्यकलाप, उसमें उस विचारणा व भावना का स्पष्ट प्रभाव स्थिर होने लगा। इस श्रेष्ठ व्यवहार के साथ ही सामाजिक गतिविधियां चलने लगी जिनसे निर्मित हुई सभ्यता और उसकी स्थायी स्थापना से ढली परम्परा तथा प्रखर बनी संस्कृति। समुन्नत बनी सभ्यता और संस्कृति से ही निखरे मूल्य, जिन्हें कहा गया मानवीय मूल्य और ये मानवीय मूल्य बन गये कसौटी मानवता की। ___ कसौटी आप समझते हैं न? कसौटी पर सोने की परख की जाती है। सोना हमेशा सोना होता है। किन्तु हमेशा उसकी शुद्धता एक-सी नहीं रहती। शुद्ध सोना 99 टंच या 24 कैरेट जैसा परखा जाता है। 99 टंच या 24 कैरेट में जितनी कमी हो, उतना सोना अशुद्ध होता है। कसौटी की तरह ही मानवीय मूल्यों के आधार पर एक मानव की परख की जा सकती है कि उस का विचार, वचन और व्यवहार कितना अशुद्ध है अथवा कितना शुद्ध है। कसौटी पर परख लेने के बाद तैयारी होती है कि उस सोने को निश्चित रासायनिक प्रक्रियाओं से गुजार कर पूर्ण शुद्ध बनाया जाए। अशुद्ध सोना किसी को रास नहीं आता है। कैसी विडम्बना है कि मनुष्य सोने की अशुद्धता तो पसन्द नहीं करता, लेकिन अपनी निज की शद्धता-अशद्धता का उसे भान तक नहीं है-उसे परखने तथा शद्ध बनाने की तैयारी तो आगे की बात है। यह हकीकत है कि मानवीय मल्यों को स्वयं मानव ने ही गढा है और उन्हें मानदंड के रूप में प्रस्थापित एवं प्रतिष्ठित किया है। जिसको शुद्ध सोना चाहिए, वह कसौटी को कभी नहीं तोड़ेगा। कसौटी वही तोड़ता या वही उसका उपयोग बन्द करता है जो अशुद्ध सोने का काला व्यापार करना चाहता है। यही स्थिति मानवीय मूल्यों की भी है। श्रेष्ठ एवं चरित्रशील मानव सदा मानवीय मूल्यों को अपनाना तथा सक्रिय बनाए रखना चाहता है। वह प्रत्येक संभव उपाय द्वारा और आवश्यकता पड़ जाए तो प्राणपण से उनको बचाने की तत्परता दिखाता है। इसे मानवीय स्वभाव या प्रवृत्ति कहना होगा। किन्तु अपने स्वार्थों में अंधे बनकर कई मानव इन मानवीय मूल्यों की अवहेलना करते हैं या उन्हें नष्ट भ्रष्ट करते हैं तो वे अपनी ही रचना को कलंकित करने वाले कहे जाएंगे। अपनी ही रचना को नष्ट करने वाला स्वभाव या आचरण दानवीय कहा जाएगा। मानव-मानव में ही मानवीय या दानवीय अन्तर की यही पृष्ठभूमि है। ___ मानवीय मूल्यों को जो गढ़ते हैं, वे मानव कहलाते हैं और अपने गढ़े मूल्यों को ही जो बिगाड़ते हैं, उन्हें दानव कहना होगा। किन्तु एक मानव सदा मानव ही बना रहेगा या एक बार दानव बना मानव सदा दानव ही बना रहेगा-ऐसा नहीं होता, क्योंकि यह एक भावनात्मक मन:स्थिति होती है। ऐसी परिस्थितियां आ जाती है कि दृढ़ता रखते-रखते भी मानव दानवीय प्रवृत्ति से जुड़ जाता है और स्वार्थवश जानबूझ कर भी कोई मानव दानव बन जाता है तो यह अशुद्धता का न्यूनाधिक रूप माना जाएगा। अब जो शुद्धता एवं मानवीय मूल्यात्मक दृष्टि से मानव है और प्रखर मानव हैं, उन्हें कसौटी अपने हाथ में लेनी होती है और दानव बनती मानवता की परख करनी होती है। तब उनके हाथों उस 80
SR No.002327
Book TitleSucharitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
PublisherAkhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
Publication Year2009
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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