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________________ सुचरित्रम् बनाया था। आप इस कबूतर के भार के बराबर अपने शरीर का मांस मुझे दे दें। मुझे कोई आपत्ति नहीं रहेगी।' दयालु राजा तुरन्त तत्पर हो गए। एक तराजू मंगाया गया। एक पलड़े में कबूतर को बिठा दिया गया और दूसरे पलड़े में राजा अपनी जंघा का मांस काट-काट कर रखने लगे, लेकिन आश्चर्य कि कबूतर वाला पलड़ा भारी होकर टस से मस नहीं हो रहा था। एक के बाद एक अंग और उपांग काट कर धरते रहे, किन्तु पलड़ा वहीं का वहीं। भावोद्रेक से वे पूरे के पूरे ही पलड़े में बैठ गए। तभी राज्यसभा में एक अद्भुत प्रकाश कौंधा, कबूतर व बाज दोनों गायब थे, उनकी जगह दो देवता हाथ बांध खड़े थे और राजा भी पूर्ववत् अपने सिंहासन पर विराजमान थे। देवताओं ने मानव को नमस्कार किया, आखिर क्यों? प्राचीनकाल में तो देवता ही वन्दनीय माने जाते थे, क्योंकि मानव उन्हें प्रसन्न करके वरदान मांगता था। यहां मानव की सेवा में देवताओं ने अपना सिर झुकाया था। कारण, राजा ने अहिंसा के लिये संयमपूर्वक तप किया था और उसके सामने देवत्व भी छोटा पड़ गया। अहिंसा, संयम और तप रूप धर्म उत्कृष्ट मंगल का कारण होता है और जो ऐसे धर्म से सदा के लिये अपने मन को जोड़ लेता है, उसे देवता भी नमस्कार करते हैं। (धम्मो मंगल मुक्किटुं, अहिंसा संजमो तवो। देवावि तं णमंसंति जस्स धम्मे सया मणो-दशवै : कालिक सूत्र, 1-1)। दूसरी झलक : मिश्र देश के विख्यात पिरामिड में एक मानवाकार की मूर्ति है। आकार मानव का है किन्तु कुछ विचित्र है और गूढ अर्थ से भरा हुआ। इस मूर्ति की आकृति में चेहरा तो मानव का है, लेकिन शरीर पशु का है और दोनों तरफ ऐसे पंख लगे हैं जैसे कि वह उड़ने ही वाला हो। उसकी वह स्थिति गुरुत्मान् की स्थिति है। इसके अनुसार मानव त्रिविधात्मक रूप वाला हुआ-1. पशुत्व विद्या, 2. नरत्व विद्या एवं 3. अतिक्रमित विद्या अर्थात् ऊपर उड़ान भरने वाली विद्या। ___ इस त्रिविधात्मक रूप में मुनष्य के आचार का प्रश्न समाया हुआ है जो वस्तुतः मानव विज्ञान से ही संबंधित प्रश्न है। आचार का अभिप्राय सदाचार से है। सदाचार स्थायी, सार्वदेशिक एवं सार्वकालिक होता है। सब क्षेत्रों में, सब समयों में सदाचार का एक ही शाश्वत स्वरूप होता है। दूसरे शब्दों में सदाचार सत्य का प्रतिरूप है। सदाचार मात्र मनुष्य की समस्या है तो समाधान भी। सदाचार बदलता नहीं सो वह भगवत्स्वरूप है। जो बदलता है, वह अनाचार या झूठ है जो इस्लाम की भाषा में कुफ्र' है। पैगम्बर मोहम्मद साहब ने मानव की परिभाषा करते हुए बताया है कि जो बदलता है वह कुफ्र है और बदलने वाला काफिर, लेकिन जो नहीं बदलता, वह खुदाई तक पहुंचा हुआ मानव है ( मैं खूब जानता हूं कि तुम कौन हो, क्या हो। गर कुफ्र न होता तो मैं कहता की तुम खुदा हो)। ___ यथार्थ में मानव कुफ्र या खुदाई की या सत्य और अनृत (झूठ) की ग्रंथि है। तभी तो उस की एक विधा पशुत्व विधा है, जिसे शरीर की विभः कह लीजिये। मानव शरीर की मूल बातें दो हैं-1. जिजिविषा अर्थात् जीवित रहने की लालसा और 2. भोगेषणा अर्थात् अनुकूलता की बुभुक्षा। नीतिकारों ने कहा है कि आहार, निद्रा, भय और मैथुन की प्रवृत्तियां मानव और पशु में समान रूप से है। पशु से मानव की विशेषता है तो मात्र धर्म या कर्त्तव्यपालन की (आहार निद्रामय मैथुन च, 78
SR No.002327
Book TitleSucharitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
PublisherAkhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
Publication Year2009
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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