________________
अब तक के विकास का पोस्टमार्टम अर्थात मानव जीवन के यथार्थ की खोज
ज्ञान-विज्ञान के विकास का यह उजला पक्ष है कि व्यवहार ज्यादा बिगड़ने के बावजूद मान्यताओं में अहिंसा, सद्भाव, मानवाधिकार, प्राणी रक्षा, विश्व एकता आदि सार्वजनिक विषयों में अधिक सुदृढ़ता आई है। सामाजिक एवं मूल्यात्मक चेतना की अभिव्यक्ति जागी है, प्रखर बनी है: ___ ज्ञान-विज्ञान के अब तक के विकास का एक लाभप्रद बिन्दु और भी है। जहां पौर्वात्य सभ्यता में व्यक्ति ही विकास का केन्द्र बिन्दु बना रहा, वहां पाश्चात्य सभ्यता में सामाजिकता का त्वरित वैज्ञानिक विकास हआ और समाजवाद, साम्यवाद आदि की विचारधाराएं उपजी तथा
वहारिक प्रयोग भी हए। इन विचारधाराओं से परा संसार प्रभावित हआ। संसार के पर्वी भाग में भी चाहे राजतंत्र के अत्याचार हों अथवा आर्थिक विषमता का फैलता जाल-जन विरोध का युग शुरु हुआ जिस के साथ ही समाज की धारणा मजबूत बनी। ___ व्यक्ति जागरण इस रूप में दो प्रकार से परिवर्तित हुआ-एक तो व्यक्ति की शक्ति के साथ ही सामाजिक शक्ति का उदय हुआ और सामाजिक शक्ति को विशेष प्राभाविक माना जाने लगा। इस रूप में विश्व के कई भागों में सामाजिक चेतना की जागृति ही नहीं हुई बल्कि उसकी प्रखर अभिव्यक्ति भी सामने आई। व्यक्तिगत शासन तंत्रों की जगह-जगह समाप्ति हुई और लोकतंत्रीय शासन प्रणालियां विकसित हुई। जहां एक ओर सामाजिक चेतना जगी तो दूसरी ओर मूल्यात्मक चेतना भी जागृत होने लगी और अन्य भेदभावों से ऊपर मानवीय मूल्यों का सृजन होने लगा। इस चेतना के कई रूप सामने आए-सामाजिक अन्याय का प्रतिरोध, विकृतियों के विरुद्ध विद्रोह, प्रतिवाद को हटा कर समन्वय के माध्यम से पुनः वाद की प्रतिष्ठा। यह संघर्ष मूल्यों का संघर्ष कहा जाने लगा। संस्थापित मानवीय मूल्यों की पुनः-पुनः प्रतिष्ठा हेतु चेतना जगी, संघर्ष चले और नई-नई परिस्थितियां सामने आ रही हैं। यों कहा जा सकता है कि विश्व एवं मानव की प्रगति के आदर्शों के प्रति आज अधिक संकल्पबद्धता है, अधिक जागृत अभिव्यक्ति है तो अधिक लक्ष्य एकाग्रता भी है। विज्ञान विकास से वैचारिकता बनी है तो विश्व एकता की निष्ठा बढ़ी है :
विज्ञान प्रयोग और तथ्य पर आधारित होता है, अतः उसके स्वरूप में संदेहात्मक स्थिति की गुंजाइश नहीं होती। होता यह है कि जितना जो सिद्ध हुआ तब तक वह तथ्य है और आगे चल कर जो नये तथ्य सामने आते हैं उनके अनुसार पूर्व निश्चयों में परिवर्तन हो जाता है। आशय यह कि विज्ञान के क्षेत्र में कोई निष्कर्ष अन्तिम नहीं होता, लेकिन जितना जो होता है, वह स्पष्ट होता है और उसे स्वीकार करने में कोई हिचकिचाहट नहीं रहती। __ इस वैज्ञानिक वृत्ति का प्रभाव जीवन के सभी क्षेत्रों में हुआ है और महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ा हैविचारशैली पर-सोच पर। यही कहा जाता है कि सोच वैज्ञानिक होनी चाहिये जिसका अर्थ है तथ्याधारित होनी चाहिए। ऐसी सोच मुख्य रूप से व्यावहारिक होती है, क्योंकि विज्ञान में कल्पना का स्थान तो होता है, किंतु बहुत ही प्राथमिक कि उसके साथ प्रयोग करके तथ्याधारित निष्कर्ष निकाले जाए। अब तक विज्ञान का जिस रूप में विकास हुआ है, उसके प्रभाव से वैचारिकता छनी है क्योंकि
69