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________________ अब तक के विकास का पोस्टमार्टम अर्थात मानव जीवन के यथार्थ की खोज से लदे पूरे जहाज का कहीं भी अता-पता नहीं था। वे विवश थे, उस परिस्थिति में वे क्या करें-उन्हें कुछ भी सुझाई नहीं दिया। ___संयोग से उनका लकड़ी का पटिया एक ऐसे तट से जा लगा, जिसको उन्होंने न कभी देखा था, बल्कि उसके बारे में कभी कुछ सुना तक नहीं था। कैसे भी जीवन बचे-यही एक मात्र ध्यान था। जब किनारे की रेत पर चलते हुए वे द्वीप के भीतरी हिस्से में आगे बढ़ने लगे तो उन्हें विचित्र आभास होने लगा जैसे वह हकीकत नहीं, सपना हो। सामने अद्भुत महल से निकल कर एक सुन्दरी जैसे उन्हीं की अभ्यर्थना के लिये समीप आ रही थी। वह सामने आई तो उसके रूप-सौन्दर्य को दोनों निहारते ही रह गये। उसने मधुरता के साथ कहा-'आप समुद्री दुर्घटना से थके-हारे दिखाई दे रहे हैं, कृपया चलकर मेरे आवास में विश्राम करें।' और क्या चाहिये था-अंधों को दो-दो आंखें मिल गई। जैसी महल की मालकिन सुन्दर थी, वैसी ही सुन्दर थी उसके महल की व्यवस्था। भोजन से तृप्त हो दोनों अपनी-अपनी कोमल शय्याओं में निद्राग्रस्त हो गये। जब तरो-ताजा होकर उठे तो वही सुन्दरी उनके समक्ष खड़ी थी, बोली-'मैं कार्यवश जरा दूर जा रही हूँ, देरी से लौटूंगी। ये चाबियाँ लीजिये-तब तक आप इस सुन्दर महल को देखिये, बस इसके दक्षिणी भाग में न जाइएगा।' यह कहकर वह चली गई। - जिनरक्ष व जिनपाल विस्मित, उनके मन में कौतूहल जागा कि निषिद्ध भाग को ही पहले देखा जाए। दक्षिणी हिस्से में ही पहले पहुंचे। वहां क्या देखते हैं कि एक व्यक्ति फांसी पर लटक रहा है, किन्तु अभी मरा नहीं है, धीरे-धीरे कराह रहा है। एक कोने में हड्डियों और खोपडियों का ढेर लगा है। वे स्तब्ध रह गये-इस सुन्दर महल में यह क्या है? वे फांसी पर लटक रहे व्यक्ति के पास तक चले गये और बोले-'बन्धु! आपकी यह दुर्दशा किसने की है?' उसने एक हिचकी ली और धीरेधीरे कहा-'क्या आप भी समुद्री दुर्घटना में फंस कर संयोग से यहां पहुंचे हैं?' उन्होंने हां कहा तो वह बोला-'मैं भी इसी तरह पहुंचा था। यह महल की जो मालकिन है, वह मानवी नहीं, राक्षसी है। भूले भटकों को पहले आसरा देती है, अपने रूप से लुभाती है और अन्ततः उनका खून निचोड़ कर पी जाती है, उनको फांसी पर लटका कर । आज मेरी यह दशा की है, कल आप लोगों की भी यही दशा होगी।' तो क्या बचाव का कोई उपाय नहीं है?-दोनों ने पूछा । वह बोला-मुझे बाद में मालूम हुआ मेरी ही तरह मरते उस व्यक्ति से। क्या है वह उपाय, हमें बताइये, हम किसी भी तरह बचना चाहते हैंदोनों भाइयों ने गिड़गिड़ा कर कहा। सुनो-'महल की पूर्व दिशा में एक देव का स्थान है, वह रक्षक है। तुरन्त उसी के पास चले जाओ कहते-कहते उस व्यक्ति का सिर लुढ़क गया।' दोनों भाई भाग कर देव के स्थान पर पहुंच गये। देव से करुण विनति की, देव प्रकट हुआ। वह सब जानता था, फिर भी उसने सब सुना और निर्देश दिया-कल प्रातः यहीं पहुंच जाना, तुम्हें एक घोड़ा मिलेगा वह मैं ही होऊंगा। तुम दोनों उस पर सवार हो जाना-सवार होते ही वह आकाश में उड़ने लगेगा और तुम्हें तुम्हारे घर तक पहुंचा कर ही दम लेगा। उसने चेतावनी दी-ज्योंही घोड़ा आकाश में उड़ान भरेगा, वह राक्षसी परम सुन्दर रूप से पीछा करेगी, मोह का जाल फैलाएगी और सभी हथकण्डे करेगी, पर दोनों कतई पीछे न देखें। ज्योंही किसी की नजर पीछे चली गई तो घोडा उसे 65
SR No.002327
Book TitleSucharitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
PublisherAkhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
Publication Year2009
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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