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अब तक के विकास का पोस्टमार्टम अर्थात् मानव जीवन के यथार्थ की खोज
चरित्र का यथार्थ कहाँ और कैसा?
कहानी है चतुष्कोणीय चोकोर की, जिसके दो कोण
एकदम एक समान तो शेष दो कोण एकदम विपरीत। किन्तु जब परीक्षा की घड़ी आई तो दो समान कोण एकदम असमान हो गए और इन्हीं से प्रकट हुआ मानव जीवन के यथार्थ की खोज का रहस्य।
जिनदत्त सेठ के दोनों पुत्र जिनरक्ष और जिनपाल इस बार पिता के स्थान पर विदेश यात्रा के लिये रवाना हुए। उनका समुद्रतटीय देशों में विस्तृत वाणिज्य था। अपने देश की विख्यात वस्तुएं वहां बेचते और वहां की विख्यात वस्तुएं अपने देश को लाते-दोनों ओर लाभ ही लाभ कमाते। जिनरक्ष और जिनपाल घर से विदा होकर अपने जहाज पर पहुंचे, सारी व्यवस्था का निरीक्षण किया और जहाज को रवाना करने का आदेश दिया।
कई दिनों तक जहाज सागर की फैली हुई नीली सतह पर आगे बढ़ता रहा, किन्तु एक रात अचानक जोरदार तूफान उठा और नींद ही नींद में कितनी बड़ी दुर्घटना घट गई, बड़ी मुश्किल से ही उसका अहसास हुआ। सुबह एक बड़े से डोलते हुए लकड़ी के पटिये पर दोनों भाई विस्फारित नेत्रों से चारों ओर देख रहे थे और उनके माल
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