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________________ 3. स्थानांगसूत्र संवत् स्वरूप पे. कर्ता कृति विशेषनाम भाषा*गद्य-पद्य परिमाण*आदि-अंत*प्र.क्र. 2 | महाप्रज्ञजी आचार्य वि. 2033P (हिं.) * गद्य * (श्रु. 1) {आयुष्मान् ! मैंने...पुद्गल अनन्त हैं।} {179) 162 अनु., विवे. | 1 | हीरालाल शास्त्री वि. 2035P | (हिं.) * गद्य * (श्रु. 1) {हे आयुष्मन्।...कहे गये हैं।} {180} (12) 163 2 | वीरमतीबाई महासती | वि. 2056P | (गु.) * गद्य * (श्रु. 1) (हे आयुष्यमान् !...पुद्गल अनंत छे.} {187} 3 | अमरमुनिजी उपप्रवर्तक वि. 2061P | | (हिं.) * गद्य * (श्रु. 1) {आयुष्मन् ! मैंने...कहे गये हैं।) {195) 165 | सुरेन्द्र बोथरा | वि. 2061P | अमरमुनिजी उप. कृत (हिं.) अनु. और विवे. का भाषां. * (अं.) * गद्य * (श्रु. 1) {Long lived one...taste and touch.) {195) 166 टीकानु. देवचंद्रजी उपाध्याय | अभय. टीका का अनु. * (गु.) * गद्य * (श्रु. 1) {168, 197) (13) 167 अर्वा.टीकानु. 1 | घासीलालजी महाराज (#) वि. 2022P | 'स्वोपज्ञ' * (हिं.) * गद्य * (श्रु. 1) {173} (14) 168 | 2 | घासीलालजी महाराज (#) | वि. 2022P | 'स्वोपज्ञ' * (गु.) * गद्य * (श्रु. 1) {173, 174} 169 विवे. (15) |1| नित्यानंदसूरि | वि. 2056P | 'चतुर्भगीयों का विवे.' * (हिं.) * गद्य * (श्रु. 1→अ. 4था) {185} 170 2 | दीपरत्नसागरजी वि. 2066P | 'अभय. टीकानुसारी' * (गु.) * गद्य * (श्रु. 1) (199) 171 प्रव. (16) |1| सागरानंदसूरि वि. 1991 (गु.) * गद्य * (श्रु.1→अ.5→उ.1→सूत्र 1)→प्रव. 72 {169, 170, 172) 172 | महाप्रज्ञजी आचार्य वि. 2054P 'मंजिल के पडाव' * (हिं.) * गद्य * (श्रु. 1) →प्रव. 32 {1517} 173 | नित्यानंदसूरि वि. 2058P तीसरे स्थान की त्रिभंगीयों के प्रव. * (हिं.) * गद्य * (श्रु. 1→अ. तीसरा) प्रव. 20 {191) 174 शोधग्रंथ । | पारसमणि खिचा वि. 2055P जैन आगमों का दार्शनिक एवं सांस्कृतिक विवेचन * (हिं.) * गद्य * अध्याय 6 {184} (17) 175 मूल (1) सुधर्मास्वामीजी 4. समवायांगसूत्र (175-197) वी.सं. पूर्व (प्रा.) * गद्य, पद्य - श्रु. 1→अ. 1→उ. 1→सम. 100+ त्रीश वर्ष प्रकीर्णक→सूत्र 159 ग्रं.1667 {सुयं मे आउसं...ति त्ति वैशाख सुद बेमि।।) (201, 202, 203, 204, 205, 206, 207, 209, 210, 211, 212, 213, 214, 215, 216, 217, 218, 219, 220. 221, 222, 223, 224,225, 226, 227,229, 1349, 1367, 1377, 1380, 1382, 1393, 1408, 1510,1511336) 11 176 टीका (2) अभयदेवसूरि वि. 1120 (सं.) * गद्य * (श्रु. 1), प्रशस्ति श्लोक-9 ग्रं.3575 {श्री वर्द्धमानमानम्य समवायाङ्गवृत्तिका।...चतुर्थमङ्गं वृत्तितः समाप्तम्।) (201, 203, 204, 206, 214, 217, 221, 225, 226, 227, 229,1511312) | (मा.गु.) * गद्य * (श्रु. 1) ग्रं.5657 (देवदेवं जिनं नत्वा 177 बा.बो. (3) मेघराज उपाध्याय वि. 165523
SR No.002326
Book TitleAgam Prakashan Suchi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNirav B Dagli
PublisherGitarth Ganga
Publication Year2015
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size12 MB
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