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आगम कृति परिचय
क्र. स्वरूप
पे. | कर्ता
परमेष्ठीदासजी जैन
74 शोधग्रंथ
(28)
2| प्रियदर्शनाश्रीजी
संवत् कृति विशेषनाम भाषा गद्य-पद्य परिमाण आदि-अंत*प्र.क्र. वि. 2044P 'आचारांगसूत्र : एक अध्ययन' * (हिं.) * गद्य * (श्रु. 2)
→अध्याय 8 {43} वि. 2051P 'आचारांगसूत्र का नीतिशास्त्रीय अध्ययन' * (हिं.) * गद्य *
अध्याय 8 {52} | वि. 2057P 'आचारांग : शीलांक वृत्ति एक अध्ययन' * (हिं.) * गद्य *
अध्याय 7 {71} वि. 2057P | 'आचारांग और महावीर' * (हिं.) * गद्य * अध्याय 7
{69}
3 राजश्री साध्वीजी डॉ.
शुभ्रयशा साध्वीजी डॉ.
78
मूल (1)
सुधर्मास्वामीजी
2. सूत्रकृतांगसूत्र (78-135)
वी.सं. पूर्व (प्रा.) * पद्य, गद्य * श्रु. 2→अ. 16+7→उ. 26+7-→सूत्र त्रीश वर्ष
| 637+236 ग्रं.2100 (बुज्झिज्ज तिउट्टेज्जा , बंधणं...उवसंप. वैशाख
ज्जित्ताणं विहरति तिबेमि।) {99, 100, 101, 103, 104, सुद 11
105, 106, 108,111, 112, 113, 115, 116, 118, 120, 121, 122, 123, 124,125, 126, 127, 128, 129, 130, 131, 132, 133,134,135, 137,138, 139,140, 141, 142, 143, 146, 147, 149, 150, 152, 154, 155, 157, 158, 159, 160, 161, 162, 1349, 1367, 1377, 1382, 1393, 1408, 1409, 1506,
1510,1544,1548361) वीरसदी (प्रा.) * पद्य * गाथा 205 ग्रं.265 (तित्थयरे य जिणवरे...
सोउं कहियंमि उवसंता।) {99, 101, 103, 104, 105, 106, 111, 127, 130, 134, 139, 150, 152, 157, 159, 160, 161, 162, 1506, 1510, 1512, 1525322)
79 नियुक्ति (2) |
भद्रबाहुस्वामी
दूसरी
80
चूर्णि (3)
जिनदासगणिजी महत्तर
वि. 733#
81 टीका (4) |1| शीलांकाचार्य
वि. 925#
मूल और नियुक्ति की चूर्णि * (प्रा., सं.) * गद्य * (श्रु. 2) ग्रं.9900 (मंगलादीणि सत्थाणि मंगलमज्झाणि...चूर्णितः सूत्रकृताभिधानं द्वितीयङ्गमिति।..(ग्रन्थाग्रं 11000)} {109, 127, 150, 153, 160, 161=6) | मूल और नियुक्ति की टीका * (सं.) * गद्य * (श्रु. 2), प्रशस्ति श्लोक-1 ग्रं.12850 {स्वपरसमयार्थसूचकमनन्तगमपर्ययार्थगुणकलितम्। सूत्रकृतमङ्गमतुलं विवृणोमि...भव्यं कल्याणभाग् भवतु।।1।। ग्रंथाग्रं (12850) ||} {99, 101, 106, 111, 127, 130, 134, 139, 152, 157, 159, 162, 1506=13} 'सम्यक्त्व दीपिका' * (सं.) * गद्य * (श्रु. 2), प्रशस्ति श्लोक 13 ग्रं.7000 {प्रणम्य श्रीजिनं वीरं, ...पूर्णेयं श्रीसूत्रकृतांगदीपिका ग्रंथसंख्या।। सुमारें।। (7000)} {99, 113, 127, 128, 15435) 'दीपिका' * (सं.) * गद्य * (श्रु. 2), प्रशस्ति श्लोक-24 ग्रं.13416 {नमः श्रीवर्द्धमानाय, स्वामिने...चेयं द्वितीयाङ्गस्य दीपिका।} {113, 127, 158} (मा.गु.) * गद्य * (श्रु. 2) {प्रणम्य सद्गुरून् भक्त्या ... द्वितीयांगस्य वार्तिकं समाप्तम्।।) (99)
82
2 | हर्षकुल गणि
वि. 1583
3 | साधुरंगगणि उपाध्याय
|वि. 1599 कारतक मास
.84
बा.बो. (5)
पार्श्वचंद्रसूरि
वि. 15542