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→ जैसे कि यहाँ पर आगमिक अनुक्रमणिका अनुसार प्रथम विभाग (आचारांगसूत्र) के सभी प्रकाशनों
का परिचय प्रकाशन संवत् के क्रम से दिया गया है एवं एक ही संवत् में प्रकाशित एकाधिक प्रकाशनों का परिचय प्रकाशकों के अकारादि क्रम से दर्शाया गया है । आचारांगसूत्र के प्रकाशनों के परिचय के पश्चात् दूसरे (सूत्रकृतांगसूत्र) एवं तीसरे (स्थानांगसूत्र) आदि विभागों के प्रकाशनों का परिचय इसी तरह से दिया गया है। + कृति परिचय एवं परिशिष्ट 1 और 2 (कर्ता/संपादक की और प्रकाशकों की अकारादि सूची) में दिए
गए प्रकाशन क्रमांक इसी क्रमांक से संबंधित हैं ।
7 प्रकाशन नाम :→ प्रकाशन परिचय अंतर्गत पुस्तक/प्रत के मुखपृष्ठ/प्रथम पृष्ठ पर संपादकादि द्वारा दिया गया प्रकाशन
का नाम सबसे पहले दिया गया है ।
2 प्रकाशन परिचायक नाम :→ प्रकाशन अंतर्गत प्रकाशित कृतियों का या प्रकाशन के मुख्य विषयों का परिचय यहाँ प्रकाशन नाम के पश्चात् कोष्ठक { } में दिया गया है, जिसके अंतर्गत प्रकाशित कृतियों का परिचय कर्ता, परिमाण, भाषा, स्वरूप आदि की आवश्यकतानुसार स्पष्टतापूर्वक दिया गया है । परिचायक नाम अंतर्गत भाषा कोष्ठक () में और आरोपित (मूलकृति के अनुसंधान से प्रदर्शित) परिमाण कोष्ठक []/ () में दर्शाये गये हैं । → यहाँ पर विशेषता यह है कि यदि कृति के स्वरूप से ही कृति के कर्ता एवं भाषा ज्ञात हो जाते हैं, . तो वहाँ कृति के स्वरूप के साथ कर्ता एवं भाषा का निर्देश नहीं दिया गया है, जैसेकि, आचारांगसूत्र
के नियुक्तिकारश्री भद्रबाहुस्वामी ही है और नियुक्ति की भाषा भी प्राकृत ही है, तो वहाँ कर्ता व भाषा का निर्देश नहीं किया है । किन्तु अनुवाद आदि कृतियाँ एकाधिक भाषा व एकाधिक अनुवादक की होने की संभावना के कारण, ऐसी कृतियों में अनुवादक के नाम व भाषा का निर्देश, परिचायक नाम में स्वरूप के साथ दिया गया है । परिमाण के लिए नियम यह है कि प्रकाशन अंतर्गत जो कृति पूर्ण रूप (पूर्ण परिमाण) से प्रकाशित है, तो एसी कृतियों के परिमाण यहाँ नहीं दिए गए हैं, केवल अपूर्ण
रूप (परिमाण) से प्रकाशित कृतियों के ही परिमाण दिए गए हैं । → प्रकाशन अगर एक से अधिक भागों में हुआ हो तो कुल भागों की संख्या परिचायक नाम के पश्चात्
दी गई है। → प्रकाशन परिचायक नाम संबंधित विशेष स्पष्टता के लिए निम्नोक्त उदाहरण देखें :→ उदा. A प्रस्तुत उदाहरण में केवल रत्नज्योतविजयजी के अनुवाद का ही परिमाण दिया गया है । जिसका मतलब है कि, प्रस्तुत में प्रथम श्रुतस्कंध का अनुवाद प्रकाशित किया गया है। जबकि मूल, नियुक्ति, टीका, टीकानुवाद आदि कृतियों के दोनों श्रुतस्कंध का प्रकाशन किया गया है । → उदा.6 प्रस्तुत उदाहरण में प्रदर्शित प्रकाशन परिचायक नामानुसार, प्रस्तुत प्रकाशन- आगम मूल/ टीका में दिये गये (प्रा.)/(सं.) अल्पपरिचित शब्दों का 'अ.., क.., ट.., फ.., श..' से शुरू होते कुल 5 भागों में प्रकाशित शब्दार्थात्मक अकारादि कोश है, जिसमें शब्दार्थ के रूप में विविध टीका चूर्णि