________________
आगम प्रकाशन परिचय
227
प्रकाशन नाम एवं परिचय
प्रकाशक {ग्रंथमाला}
संपादक, संशोधक आदि
वि.सं. (आ.) पृष्ठ (कद) |
{ज्ञाता.सूत्र, उ.द.सूत्र, अं.द.सूत्र, अनु.द.सूत्र, प्रश्न.सूत्र और वि.सूत्र मूल} भाग 3 {दे.ना., रो.} [T] {283,
| 324, 371, 416, 451, 481} 1384 गणिविद्या प्रकीर्णकम्।। वीरस्तव हर्षपुष्पामृत जैन ग्रंथमाला संशो., संपा.-जिनेन्द्रसूरि 2049 (1) |16 (P)
प्रकीर्णकञ्च {गणि.प्रकी.सूत्र और {ग्रं. 252} वीर.प्रकी.सूत्र मूल) (दे.ना., गु.}
{1266, 1278} 1385 बुद्धि - कीर्ति - कैलास - सुबोध - बुद्धिसागरसूरि जैन अप्रदर्शित
2050 (2) |136 (D) मनोहर स्वाध्याय - सरिता समाधि मंदिर
(अ.) {आ.प्र.प्रकी.सूत्र मूल, शत्रुजय लघुकल्प मूल, विनयविजयजी उपा. कृत पुण्य प्रकाश का (गु.) स्तवन
आदि} {गु.} {1209, 1513} 1386 मुक्ति-किरण (प्रकरणरत्न संग्रह) मुक्तिचंद्रसूरि ग्रंथमाळा संपा.-श्रेयांसप्रभसूरि 2051 (अ.) 68 (D)
{पंचसंयत प्रक.,द्वीप.संग्र. गाथा, जीवाभिगम संग्रहणी प्रक. मूल, लघु प्रवचन सारोद्धार आदि} भाग 2
{दे.ना., गु.} {563, 1457} 1387 निरयावलिकादि-सूत्र (कप्पवडिंसिया, आगम अनुयोग ट्रस्ट, संयो.-विनयकुमारजी मुनि, 2052 (1) 186 (E) पुष्फिया, पुष्फचूलिया, वण्हिदसा) (मूल अमदावाद
संपा.-कन्हैयालालजी मुनि मात्र गुटका) {निर.सूत्र आदि 5 सूत्र
(कमल), सह संपा.-रूपेन्द्रकुमार मूल) (दे.ना. [S] {647, 672, 697,
पगारिया 722, 745} 1388 सूर्यप्रज्ञप्ति-चन्द्रप्रज्ञप्ति
आगम प्रकाशन समिति, संयो., प्रधान संपा.-मिश्रीमलजी |2052 (2) 296 (B) [Suryaprajnapti -
ब्यावर {जिनागम मुनि, मुख्य संपा.-शोभाचंद्रजी Chandraprajnapti] {सूर्य.सूत्र, ग्रंथमाला ग्रंथांक 29) भारिल्ल, संपा.-कन्हैयालालजी चंद्र.सूत्र मूल} {दे.ना.} [T, S]
मुनि (कमल) {611,641) 1389 45-आगमसुत्ताणि (मरणसमाहि आगम श्रुत प्रकाशन संशो., संपा.-दीपरत्नसागरजी 2052 (अ.) 52 (C)
पइण्णयं) (वीरत्थओ-पइण्णयं) {मरण.प्रकी.सूत्र और वीर.प्रकी.सूत्र मूल) {दे.ना., गु.) [s]
{1278, 1494) 1390/45-आगमसुत्ताणि
आगम श्रुत प्रकाशन संशो., संपा.-दीपरत्नसागरजी |2052 (अ.) /28 (C) [गच्छायारपइण्णयं, चंदावेज्झयं पइण्णयं] {गच्छा.प्रकी.सूत्र और चंद्रा.प्रकी.सूत्र मूल} {दे.ना., गु.}
[s] {1254, 1477} 1391/45-आगमसुत्ताणि (जीयकप्प-सुत्तं, आगम श्रुत प्रकाशन संशो., संपा.-दीपरत्नसागरजी |2052 (अ.) |168
पंचकप्प-भास) { जीत.सूत्र, पंच.भाष्य मूल } {दे.ना., गु.} [3]
{867, 1442} 1392 स्वाध्याय सागर (वीरत्थुई, वि.सूत्र एस. एस. जैन संघ संपादिका-सुदर्शनप्रभाजी साध्वी 2054 (1) |228 (E)