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→ उदाहरण अनुसार यह प्रवचन की कृति है, जिसमें मूल कृति के प्रथम श्रुतस्कंध के शतक 1 से 8 एवं 9वें शतक के उद्देश 1 से 31 संबंधित कुल 31 प्रवचन हैं । यहाँ मूल कृति से संबंधित परिमाण अर्थात् आरोपित परिमाण (प्रस्तुत उदाहरण में श्रुतस्कंध आदि) को कोष्ठक '()' में दर्शाया गया है जबकि कृति का स्वतंत्र परिमाण (प्रस्तुत उदाहरण में 31 प्रवचन) कोष्ठक 'O' के बहार दर्शाया गया
(11 आदि-अंतवाक्य :→ प्राचीन कृतियों के आदिवाक्य के प्रथम तीन शब्द के पश्चात् तीन डोट (...) कर के अंतवाक्य के
प्रायः तीन शब्द दिए गए हैं । → कुछ अर्वाचीन कृतियों के भी उपरोक्त तरीके से आदि-अंत वाक्य दिए गए हैं ।
12 कृति के प्रकाशन क्रमांक :→ प्रत्येक कृति परिचय अंतर्गत सबसे अंत में जिस प्रकाशन अंतर्गत प्रस्तुत कृति के प्रकाशन हुए हैं, उनके प्रकाशन क्रमांक कोष्ठक '' में दिये गये हैं । जिसके कारण कृति के सभी प्रकाशनों से संबंधित
जानकारी यहाँ दिए गए इन प्रकाशन क्रमांको के माध्यम से जानी जा सकती है । → जिस प्रकाशन अंतर्गत कृतियों का अपूर्ण रूप से प्रकाशन हुआ है, उस प्रकाशनों के परिचय अंतर्गत ही ऐसी अपूर्ण परिमाण संबंधित जानकारी दी गई है ।
13) प्रकाशनों की कुल संख्या :→ प्रकाशन क्रमांको के पश्चात् '=' चिह्न से कृति के कुल प्रकाशनों की संख्या दिखाई गई है, किन्तु यहाँ विशेषता यह है कि प्रकाशन क्रमांकों की संख्या 3 से अधिक होने पर ही '=' के चिह्न से प्रकाशनों की कुल संख्या दर्शाई गई हैं ।