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→ उदाहरण A में विक्रम संवत् 2008 अर्वाचीन कृति की प्रकाशन संवत् है । → उदाहरण 6 में कृति की रचना विक्रम संवत् से 300 से भी अधिक वर्ष पहले होने का अनुमान किया गया है।
O प्रसिद्ध नाम एवं विशेषता :→ कृति के व्यवहार में प्रचलित नाम एवं कर्ता/संपादक के द्वारा दिए गए विशेष नाम यहाँ पर दिए गए
→ अनुवाद, विवेचन आदि कृतियों में अनुवादक, विवेचक द्वारा विशेष स्पष्टीकरण/साक्षीपाठ/तुलना आदि
अगर टिप्पण के रूप में दिये गये हैं, तो कृतियों की ऐसी विशेषताओं का उल्लेख भी यहाँ किया गया है । → टीका आदि कृतियों की रचना अगर मूल, नियुक्ति आदि एकाधिक कृतियों पर हो, तो उसकी स्पष्टता
यहाँ पर की गई है। → उदा. A में भगवतीसार कृति का प्रसिद्ध नाम है । → उदा. 6 में कृति टिप्पणयुक्त है, एवं स्वोपज्ञ है - अर्थात् कर्ता द्वारा स्वरचित प्रकरण आदि ग्रंथ __पर स्वयं ही विवेचन आदि की रचना की गई है, जिसमें टिप्पण भी कर्ता द्वारा दिए गए हैं । → उदा. A में प्रस्तुत टीका मूल और नियुक्ति इन दोनों पर बनाई गई है ।
6 भाषा :→ कृति की भाषा कोष्ठक '()' में सांकेतिक रूप से दी गई है । → भाषाओं के लिए प्रयुक्त संकेतों की सूची संकेतसूची अंतर्गत दी गई हैं ।
9 रचनाशैली :→ कृति की गद्यात्मक, पद्यात्मक आदि रचनाशैली का उल्लेख यहाँ किया गया है ।
40 परिमाण :→ कृति का प्रकाशित परिमाण ही यहाँ दिया गया है । यहाँ मूल कृतियों के परिमाण विस्तार से दिए गए हैं । → विवरणात्मक कृतियों के परिमाण दर्शाने के लिए विवृत कृति के परिमाण को कोष्ठक () में आवश्यकता
अनुसार संक्षिप्त करके दर्शाया गया है ।। → परिमाण दर्शाने के लिए उपयुक्त संकेतों की सूची संकेतसूची में दी गई हैं । → परिमाण संबंधित विशेष स्पष्टता निम्नोक्त उदाहरणों में सरलता से देने का प्रयास किया गया है । → उदाहरण में आचारांगसूत्र की मूल कृति का प्रकाशित परिमाण दिया गया है, जिसके अनुसार
आचारांगसूत्र में कुल 2 श्रुतस्कंध हैं, जिनमें प्रथम श्रुतस्कंध के 9 अध्ययन एवं प्रत्येक अध्ययन के 7, 6.. आदि कुल 51 उद्देश और प्रथम श्रुतस्कंध के कुल 323 सूत्र हैं, जबकि दूसरे श्रुतस्कंध की 4 चूलिका, 16 अध्ययन एवं प्रत्येक अध्ययन के 11, 3.. आदि कुल 25 उद्देश और दूसरे श्रुतस्कंध के कुल 481 सूत्र हैं, एवं संपूर्ण कृति का कुल ग्रंथान 2644 श्लोकप्रमाण है।