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जैसे कि प्रकाशनसूची में सूत्रकृतांगसूत्र विभाग में स्वरूपों का अंतिम क्रमांक 25 है, अर्थात् सूत्रकृतांगसूत्र विभाग में दी गई सर्व कृतियाँ कुल 25 प्रकार के स्वरूपों में विभक्त हैं । → इन क्रमांकों का अन्य सूचियों से कोई संबंध नहीं हैं।
@ स्वरूपगत पेटा क्रमांक :→ एक ही स्वरूप की एकाधिक कृतियाँ होने पर पेटा क्रमांक दिया गया है । जिसके माध्यम से विभाग
अंतर्गत प्रत्येक स्वरूप की उपलब्ध कृतियों की संख्या प्राप्त होती हैं। → यहाँ विशेषता यह है कि पेटाक्रमांक रचना संवत् के क्रम से दिए गए हैं । → जैसे कि आचारांगसूत्र की टीकाओं के अंतर्गत यह क्रमांक 1 से 3 तक दिए गए हैं, अर्थात् आचा.सूत्र पर कुल 3 टीकायें प्रकाशित हैं । शीलांकाचार्यजी की टीका का पेटाक्रमांक 1 है अर्थात् शीलांकाचार्यजी की टीका आचारांगसूत्र की प्रकाशित प्राचीनतम् टीका है । → इस क्रमांक को अन्य सूचियों से कोई संबंध नहीं है ।
6 कर्ता :→ कृति परिचय अंतर्गत स्वरूप के पश्चात् कृति के कर्ता का परिचय दिया गया है, जो कृति की पहचान ___ का महत्त्वपूर्ण अंग है । → कर्ता के परिचय के रूप में कर्ता का प्रसिद्ध नाम कृति परिचय में दिया गया है और कर्ता के गुरु,
संप्रदाय आदि विशेष जानकारी परिशिष्ट 1 (कर्ता अनुक्रमणिका) में दी गई हैं । '→ किसी एक ही नाम के दो या अधिक प्रसिद्ध कर्ता होने पर कर्ता के उपनाम, विशेषण आदि को कर्ताओं
के नाम के साथ ही कोष्ठक () में दर्शाया गया है । → कृति के रचना समय या उसके निकट काल में, कर्ता के कहने से या अन्य कारण से, किसी ओर के द्वारा कृति का संशोधन किया गया हो, तो कृति संशोधक के रूप में यहाँ पर उनका भी समावेश किया
गया है । इसी तरह कृति उद्धारक, कृति प्रशस्तिकार का उल्लेख भी यहाँ किया गया है । → उदाहरण A अनुसार कर्ता हेमचंद्रसूरि के साथ कोष्ठक () में दिया गया 'मलधारी' विशेषण समान नामधारी अन्य कर्ता ('कलिकालसर्वज्ञ' हेमचंद्रसूरि) से भेद दर्शाने के लिए दिया गया है । उदाहरण 6 अनुसार जिनहंससूरि रचित कृति के संशोधक भक्तिलाभ उपाध्याय है ।
6 रचना संवत् :→ कर्ता के पश्चात् कृति की रचना संवत् दी गई है। → रचना संवत् न मिलने पर अन्य संदर्भो के माध्यम से प्राप्त अनुमानित संवत् '#' के चिह्न से दर्शाई
गई है । सदी के रूप में दर्शित रचना संवत् अनुमानित है ।। → रचना संवत् न मिलने पर अर्वाचीन कृतियों (अनुवाद आदि) में 'P' की संज्ञा पूर्वक प्रकाशन संवत्
दी गई हैं । किन्तु यह नियम केवल और केवल अर्वाचीन कृतियों के लिए ही है । → रचना संवत् के निर्देशन में उपयुक्त संकेतों की स्पष्टता संकेतसूची में दी गई है।