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30. उत्तराध्ययनसूत्र
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क्र. प्रकाशन नाम एवं परिचय प्रकाशक (ग्रंथमाला) संपादक, संशोधक आदि वि.सं. (आ.) पृष्ठ (कद) 786 सम्यक् सोपान बनावे भगवान जैन दर्शन प्रकाशन संपादिका-उषाबाई महासती (#) 2055 (1) 584 (C)
{उत्त.सूत्र सह वनिताबाई महासतीजी कृत (गु.) प्रव.114 (अ.29वाँ)} {गु.,
दे.ना.} {876, 1010) 787 उत्तराध्ययनसूत्रम् {उत्त.सूत्र सह | भद्रंकर प्रकाशन, (P) जैन संपा. वज्रसेनविजयजी पंन्यास |2055 (अ.) |352+432= जेठालाल हरिभाई शास्त्री (2) कृत धर्म प्रसारक सभा
784 (B) छाया, (गु.) अनु.) भाग 1-2 {गु., दे.ना.) [T] {876,917a,951} उत्तराध्ययन सूत्र (भगवान महावीर की युनिवर्सिटी पब्लिकेशन संपा.-अमित मुनि
2055 (1) 916 (B) अंतिम धर्म-देशना का हिन्दी अनुवाद) |(उत्त.सूत्र सह सुभद्रजी मनि कृत छाया, (हिं.) अनु.} {दे.ना.} [T, S] {876, 927,966) जिनवाणीनी झलक {उत्त.सूत्र सह वर्धमान स्थानकवासी जैन संपादिका-उज्ज्वलकुमारीजी 2055 (अ.) |370+448+
372...-1586 उज्ज्वलकुमारी महासतीजी कत (ग.) श्रावक संघ
साध्वी (2)
(C) अनु., प्रव.120 (अ.29वाँ)} भाग 1-4
{गु., दे.ना.} {1009} 790 | उत्तराध्ययन सूत्र मूल (उत्त.सूत्र मूल) वाव जैन श्वे. म.पू. संघ, संपा.-चंद्रकीर्तिसागरजी (2) 2055 (2) 202 (D) {गु.} {876} (P) खेडा जैन श्वे. मू.
(अ.) संघ 791 आतमज्ञानी श्रमण कहावे..... [पवित्र | ॐकारसूरि ज्ञानमंदिर संपा.-यशोविजयसूरि (#) 2055 (अ.) 96 (C)
उत्तराध्ययन सूत्रना “सभिक्षु". {ग्रं.9} अध्ययन पर विवेचना] {उत्त.सूत्र का यशोविजयसूरिजी कृत (गु.) विवे.
(अ.15वाँ)} {गु., दे.ना.} {997) 792 उत्तराध्ययनसूत्रम् (उत्त.सूत्र सह अनेकांत प्रकाशन जैन संपा.चंद्रगुप्तसूरि, पूर्व 2056- 444+386+
426%3D1256 भावविजयजी उपा. कृत टीका)
2058 (1) रिलीजीयस ट्रस्ट, (P) संशो.-वल्लभसूरि
(P) भाग 1-3 {दे.ना.} [T, S] {876, 884) आत्मानंद जैन सभा,
भावनगर आगमसुत्ताणि (सटीक) {उत्त.सूत्र सह |आगम श्रुत प्रकाशन संशो., संपा.-दीपरत्नसागरजी 2056 (अ.) 384+3123 नियुक्ति, भाष्य, शांतिसूरिजी कृत
696 (C) टीका} भाग-28, 29 {दे.ना., गु.}
{876, 877,878, 880) 794 उत्तरज्झयणाणि Uttarajjhayanai जैन विश्व भारती संपा.-महाप्रज्ञजी आचार्य 2056 (3) 768 (A)
{उत्त.सूत्र सह महाप्रज्ञजी आदि कृत छाया, (हिं.) अनु., टिप्पन) {दे.ना.)
|[T, S] {876, 920,975) 795 उत्तराध्ययन सूत्र ( (हिन्दी भाषानुवाद अमोल जैन ज्ञानालय । संयो.-कल्याणऋषि
2057 (2) 382 (B) सहित) (उत्त.सूत्र सह अमोलकऋषिजी कृत (हिं.) अनु.} {दे.ना.} [T] {876,949) संयति राजाना आध्यात्मिक प्रवचनो केवळ जिनदर्शन ट्रस्ट संशो.-धन्यमुनि कवि, 2057- 372+3763 {उत्त.सूत्र के केशव मुनिजी कृत (गु.) (मणिगुरु पुष्प 47} संपा.-केवलमुनि (चिद्विलास)
2058 (2) 748 (B) प्रव.154 (अ.18वाँ)} भाग 1-2 {गु.} {1001)
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